- एमपी विधानसभा चुनाव में नही दिया एक भी वोट, लोकसभा का भी करेंगे बहिष्कार !
ना पानी,ना बिजली गुलामी या आजादी ये कैसे जगह है बैतूल जिलें में ?
- आदिवासी सांसद, विधायक होने के बावजूद भी अपने ही लोगों का नहीं कर पा रहे भला
जब स्वतंत्र होने पर भी अविकसित साधनों से जूझ रहे आदिवासी तो आजाद होने का क्या मूल्य ?
मनीष कुमार राठौर / 8109571743
बैतूल / भोपाल । देश को आजाद हुए आज 76 वर्ष पूर्ण होकर 77 साल होने वाले परंतु बैतूल जिलें के घोड़ाडोंगरी जनपद के अंतर्गत आने वाले भतोड़ी गांव में आदिवासी वही पुराने ढर्रे में जीने को मजबूर है । भारत को अंग्रेज, पुर्तगाल, मुगल सहित अनेक शासकों ने गुलाम बना कर रखा था वही अब भटोड़ी के ग्रामीणों का कहना है कि इन राजनीतिक पार्टियों ने वोट बैंक की तरह हमारा उपयोग किया है । क्योंकि हम लोगों को मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए थे वह हमसे कोसों दूर है, दुनिया आज अंतरिक्ष और ब्रह्मांड को देख रही है तो भारत के मध्यप्रदेश के बैतूल जिलें की घोड़ाडोंगरी तहसील में लगभग 200 साल से रह रहे ग्रामीण के पास बिजली और मोबाईल नेटवर्क नही पहुंच पाया है । ग्रामीणों ने कहा कि हम कैसे आजाद हुए है ? यह कैसा डिजिटल इंडिया है ? ऐसे कैसे कैहला सकते है विश्व गुरु जब भतोडी गांव के स्कूल में गुरुजी तक नही जाते है ? जहा पर पीने के पानी के लिए चुनिंदा हैंडपंप पर आश्रित रहना पढ़ता है गांव वालो को । ग्रामीणों ने बताया की बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए उनके द्वारा सभी अधिकारी, नेता, मंत्री का दरवाजा अलग अलग समय में खटखटाया परंतु इनकी समस्या का समाधान किसी ने नही किया
जिसके कारण घोड़ाडोंगरी तहसील के मतदान केंद्र 49 पर 0 प्रतिशत वोटिंग विधानसभा में हुई । क्योंकि यह पर रहने वाले 259 पुरुष और 231 महिलाओं सहित कुछ 490 लोगों ने अपने हक का उपयोग न करते हुए मतदान का बहिष्कार कर दिया । क्या यह शर्म की बात नहीं है कि आज आजाद भारत में ग्रामीण बिजली के बिना अंधेरे में रहने के लिए बेबस है, बजबूर आदिवासी आखिर करते भी तो क्या, क्योंकि इनको पीढ़ी दर पीढ़ी कभी जाति के नाम पर तो कभी सुविधा देने के नाम पर ठगा गया है ।
क्या है कहना है ग्रामीणों का
बैतूल जिले की घोडोंगरी जनपद के अंतर्गत आने वाली पंचायत रामपुर के गांव भतोड़ी के ग्रामीण ने अपनी समस्या बताते हुए बताया की उनके गांव में कुछ वर्ष पूर्व सोलर पैनल दिए गए थे जिसकी बैटरी अब खराब हो चुकी है वहीं पर्याप्त पानी भी पीने के लिए नहीं है, ना ही बिजली के खंबे हैं, ना गांव के अंदर सड़के है, साथ ही जो गांव में स्कूल है वहां पर भी नन्हे मुन्ने बालक बालिकाओं को शिक्षा नहीं मिल पाती है । इसके साथ ही ग्रामीणों ने अनेक समस्या बताइए आप समझ सकते हैं कि जब इस प्रकार से लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं तो हम आज चांद पर है या जमीन में, साथ ही ग्रामीणों ने बताया कि विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया था और वह अब लोकसभा चुनाव का भी बहिष्कार करेंगे क्योंकि उनका कहना है की यह सब नेता झूठें वादे करने के लिए आते है और चले जाते है वही हमारी समस्या जस की तस रह जाती है, इसलिए हम आने वाले लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे । क्योंकि आजाद भारत में जब हमें अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए दर दर की ठोकरें खाना पढ़ रहा है तो कैसा चुनाव और किस लिए चुनाव में भाग ले, साथ ही प्राईम संदेश के पाठकों के लिए एक बात और बता दे की घोड़ाडोंगरी नगर परिषद का एक वार्ड ऐसा भी है जहा बिजली के खंबे के लिए वार्डवासी जब पंचायत घोड़ाडोंगरी थी तब से मांग कर रहे है परंतु आज तक खंबे नही लगे जबकि घोड़ाडोंगरी ग्राम पंचायत से नगर पंचायत हो गई । परंतु नगर में रह रहे वार्ड वासियों की परेशानियां जज की तरह से जब एक तहसील मुख्यालय पर एक वार्ड के लोगों के लिए बिजली के खंबे नहीं लग पाए हैं तो इससे आप समझ सकते हैं कि देश में लोगों का कितना विकास हुआ है, जब परिषद जैसे क्षेत्र में लोग बिजली के लिए परेशान हो रहे हैं तो ग्रामीण क्षेत्र की तो आप बात ही नहीं कर सकते, अविकसित साधनों की वजह से पिछड़ रहे जिलें के ग्रामीण आदिवासी । आजाद होने के कितने वर्ष बाद भी जब नहीं पहुंच पाए बिजली के खंबे तो यह कैसी आजादी या आज भी जी रहे गुलामी में ।