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मां हिंगलाज देवी मंदिर में पूरी होतीं लोगों की मन्नते दिन में तीन बार बदलता है माता का रुप।

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मां हिंगलाज देवी मंदिर में पूरी होतीं लोगों की मन्नते

दिन में तीन बार बदलता है माता का रुप।

 

*दैनिक प्राईम संदेश जिला* *ब्यूरो चीफ राजू बैरागी जिला *रायसेन*

 

 

बाड़ी: शारदीय नवरात्र के पहले दिन से ही मां हिंगलाज शक्तिपीठ में देवी के दर्शनार्थ मंदिर में भीड़ जुटने लगी है। सुबह से लेकर देर शाम रात तक देवी के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लग रहा है।

यहां पर नगर के अलावा गांव नगर हो महानगरों और देश के प्रदेश के कोनों से श्रद्धालु आते हैं क्योंकि लोगों का मानना है कि भारतवर्ष में बाड़ी नगर में ही अकेला शक्तिपीठ स्थापित है इसके अलावा बलूचिस्तान पाकिस्तान में मौजूद।

मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मुरादें माँ हिंगलाज देवी पूरी करती हैं। लाखो भक्तों की आस्था का केंद्र बने इस प्राचीन मंदिर में भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, सहित पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी अनेक राजनेता माथा टेक चुके हैं।

हिंगलाज मंदिर का पौराणिक महत्व है। साल के बारहों मास मंदिर पर हजारो की संख्या में श्रद्वालु पहुंचते हैं। आसपास के जिले से लोग मन्नतों की पूर्ति के लिए देवी के दरबार में माथा टेकते हैं।

दिन में तीन बार बदलता है माता का रुप:

जहां सुबह बाल्यावस्था मे श्रृंगार दर्शन देती हैं। उसके बाद दोपहर में युवावस्था, उसके बाद शाम को वृद्धावस्था स्वरूप में मैया दर्शन देतीं हैं।

अनेक चमत्कारों से परिपूर्ण माँ हिंगलाज की महिमा अनन्त है।

 

हिंगलाज मंदिर की स्थापना

खाकी अखाडा की मंहत परम्परा में चौथी पीढी के मंहत श्री भगवान दास महाराज “माँ हिंगलाज” को अग्नि स्वरूप में लेकर आये। वर्तमान में श्री रामजानकी मंदिर के पास में अखण्ड धूनी चैतन्य स्थान हेेै। यह अग्नि ज्योति स्वरूप में मंहत जी बलूचिस्तान से (जो माॅ हिंगलाज की मूल शक्तिपीठ हैं) लेकर आये थे। श्री मंहत भगवानदास जी, श्री राम के उपासक एवं माॅ जगदम्बा के अनन्य भक्त थे, उनके मन में “माॅ हिंगलाज शक्तिपीठ” के दर्शन की लालसा उठी। महंत अपने दो शिष्यों को साथ लेकर पदयात्रा पर निकल पडे। मंहत लगभग 2 वर्षो तक पदयात्रा करते रहे। अचानक मंहतश्री संग्रहणी-रोग से ग्रषित हो गए, अपितु अपनी आराध्य माँ के दर्शनो की लालसा में पदयात्रा अनवरत जारी रही। एक दिन मंहतश्री अशक्त होकर बैठ गए और माॅ से प्रार्थना करने लगे कि- हे माॅ आपके दर्शनो के बिना में वापिस नहीं जाउगा,चाहे मुझे प्राण ही क्यो त्यागना ना पडे। एक माह तक शारीरिक अस्वस्थता की स्थिति में जंगली कंदमूल-फल का आहार लेकर अपने संकल्प पर अटल रहे। कहते है कि भगवान भक्तों की कठिन से कठिन परीक्षा लेते है। वर्षा के कारण एक दिन धूनी भी शांत हो गई, जिस दिन धूनी शांत हुई उसके दूसरे दिन प्रातःकाल एक भील कन्या उस रास्ते से अग्नि लेकर निकली और महंत से पूछने लगी कि, बाबा आपकी धूनी में तो अग्नि ही नही है,आप क्यों बैठे हो। बाबा ने अपनी व्यथा उस कन्या को सुनाई। कन्या उन्हे अग्नि देकर अपने मार्ग से आगे बढकर अंतर्ध्यान हो गई। मंहतश्री ने उस अग्नि से धूनी चैतन्य की ओर मन ही मन “माॅ हिंगलाज” से प्रार्थना करने लगे। रात्रि में उनको स्वप्न आया कि भक्त अपने स्थान वापिस लौट जाओ। मैने तुम्हे दर्शन दे दिये हैं। मेरे द्वारा दी गई अग्नि को अखण्ड धूनी के रूप में स्थापित कर “हिंगलाज मंदिर” के रूप में स्थापना कर दो।इस प्रकार बाडी नगर में “माॅ हिंगलाज देवी मंदिर” जगदम्बे की “51वी उपशक्ति पीठ” के रूप में स्थापित हुआ। श्रद्धालुओं का मानना है नवरात्र के समय माता किसी न किसी रूप में मंदिर में साक्षात उपस्थित रहती हैं।

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