News By-नितिन केसरवानी
कौशाम्बी: संदीपनघाट कोतवाली के मोहनापुर गांव की शाम उस दिन कुछ अलग थी। सूरज डूबने को था, पर गांव के दो मासूम— अंशू और श्रेयांश— समय से पहले गंगा की लहरों में डूब चुके थे। महज तरबूज की तलाश में निकले थे दोनों। कौन जानता था कि प्रकृति की गोद उन्हें इस तरह समेट लेगी कि घर लौटने की कोई राह न बचेगी।
10 साल का अंशू और 8 साल का श्रेयांश, हंसते-खेलते, चहकते हुए उस कछार की ओर बढ़े जहां गंगा शांत बह रही थी। लेकिन वो शांति कुछ ही पलों में मातम बन गई, जब फिसलन ने उनका बचपन लील लिया।गांव में कोहराम मच गया। हर गली में सिसकियां, हर आंख में तूफान। पर इस शोक के अंधकार में एक उजाला भी था — चायल के उप जिलाधिकारी आकाश सिंह की मानवीय पहल। घटना की खबर मिलते ही वे न सिर्फ हर स्तर पर सक्रिय हुए, बल्कि उन्होंने प्रशासन की संवेदनशीलता को जीवंत कर दिया।
लेखपाल गजेंद्र सिंह की रिपोर्ट पर त्वरित पंचनामा, पोस्टमार्टम और फिर राहत कोष से सहायता राशि की प्रक्रिया इतनी गति से हुई कि पीड़ित परिवारों को 24 घंटे के भीतर आर्थिक सहायता मिल गई। यह केवल एक प्रशासनिक कार्य नहीं था — यह उन आंखों की नमी को समझने का प्रयास था, जो अब अपने लाल की राह नहीं देख पाएंगी।