नेता तब भी नेता था, नेता आज भी नेता है ठीक उसी प्रकार जैसे गधे तब भी गधे थे, आज भी गधे है, इसलिये हमारा शहर इन गधों और नेताओं के लिसे कुख्यात है। कुख्यात करने का काम यहॉ के जमे-जकड़े कुछ फोटोग्राफरों ने किया है जो सुबह-शाम कहीं न कहीं किसी न किसी एंगिल से अपनी उत्कृष्ट फोटोग्राफी से नेता और गधों को इस नगर का भार ढोते दिखाते है। व्हाटसअप ग्रुप, फेशबुक सहित अन्य सोसलमीडिया प्लेटफार्म पर लाईव प्रसारण करने आ टपकने वाले इन फोटोग्राफरों द्वारा जिस तरह से रोज इनके फोटो और वीडियो पोस्ट करने के बाद हजारों लोगों द्वारा देखे जाकर कई मजेदार कमेन्टस भी किये जाते है वह नेता और गधों में कोई भेद नहीं करता है। मेरे मित्र है हितेश थुदगल जो गधे-खच्चर, कुत्ते-बिल्ली, घोड़े सुअर सभी पशु-पक्षियों पर पैनी कलम से फोकस रख जनसमस्याओं के साथ जोड़कर गधों को स्टार बनाये हुये है और कुछ स्वामीभक्त नेताओं को। श्री थुदगल गधों की वैरायटी ही नहीं बताते, बल्कि इन गधों के मन के भावों को भी समझते है और जिस गधे की पीड़ा बेशुमार हो जाती है, उस गधे का अभिनीत चित्र जारी कर उसकी व्यथा भी बता देते है पर गधों के आंसूओं की कद्र नहीं होने से वे उनके दुख और ऑसूओं को प्रकट तो करते है, पर व्याख्या नहीं करते है।
श्री थुदगल जी के खींचे चित्रों में गधों द्वारा जनता पर किये गये अत्याचार हो, या गधे खुद अत्याचार के शिकार है, यह पता चल जाता है पर जिस प्रकार उनका इस शहर के गधों के अलावा दो नम्बरी गधों पर शोध है वह काबिले तारीफ है। गधों पर अगर बोझ लदा है, तब और जब वे बिना बोझ के है तब, दोनों ही स्थिति में गधों के मस्तिष्क को वे पढ़ लेते है। श्री थुदगल जी ने जिन गधों के 10 सालों में फोटो पोस्ट किये है उन पर मैं बारीकी से अध्ययन कर रहा हॅू जिससे सिद्ध है कि श्री थुदगल जी गधा विशेषज्ञ है और उनके गधों के हाव-भाव का मार्मिक चित्र बताता है कि उन पर किस प्रकार अत्याचार का बोझ लादा गया है। यह उनका गधा प्रेम ही है जो गधों पर उनके खींचे चित्रों को पांच श्रेणी में वर्गीकृत करता है जिसमें गधों पर लदा अत्याचार, घमंड, ईर्ष्या, दुष्टता, बेईमानी एवं कुटिलता के रूप में देखा जा सकता है, ये गुण नेताओं के कुलीनता त्यागे जाने से उनमें कूट-कूट समाये हुए है पर कोई ऐसी आंख नहीं है, जो नेताओं के चेहरे पर इन गुणों को स्पष्टतः देख सके। कभी कभार केमरे इन्हें देख लेते है, पर कैमरे इन गुणों का साक्ष्य रखने का बोझ गधों की तरह संभाल पाने में असमर्थ कर दिये जाते है, क्योंकि कैमरामैन को उसकी मुंह मांगी कीमत मिल जाने पर वह नेताओं के ये गुण उसी प्रकार नदारद हो जाते है जैसे कहावत है गधों के सिर से सींग गायब होना। मेरा सम्बन्ध इन गधों और नेताओं के साथ-साथ कामचोर और कलम चोरों से भी है, पर अपने नाम की चमक को सफेदी सा स्याह चमकाने के लिये हितेश जी द्वारा खींचे गये गधों के चित्रों का एक एलबम बनाकर शोध करने की गुस्ताखी कर रहा हॅू।
जैसे की आप जान चुके हो कि गधों पर अत्याचार का बोझ है। पर किस गधे की पीठ पर घमंड लदा है, किस की पीठ पर ईर्ष्या लदी है, किस की पीठ पर कुटिलता लदी है और किस की पीठ पर बेईमानी यह वे ही समझते है जो गधों को समझते है इसलिये आपको जानना समझाना जरूरी समझता हॅू। आप न जानते है और न ही समझते है कि कब, किसने कहा मुँहमाँगी बोली लगाकर इन गधों के पीठ पर लदे इन अत्याचार के बोझों को कम किया या पूरा बोझ उतार दिया। जैसे नेता का काम है अपनी प्रजा पर अत्याचार लादे फिर वोट पाकर आप पर लदे अत्याचार के बोझ से आपको मुक्त कर सके। गधे के अत्याचार के बोझ को कम करने या बोझ समाप्त करने का काम नेता का है। गधों पर लदे घमण्ड का बोझ यहां के रईसजादों, पूंजीपतियों की संपत्ति है जो मुँह माँगा दाम देकर ये घमण्ड खरीदकर धमण्ड का बोझ अपने दिमाग में भरकर घूमते है। गधों के पीठ पर लदी ईष्या को यहॉ के पढ़े लिखे विदवान, बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, कवि ओर हम जैसे कलमचोर खरीदते है ताकि दूसरों से बराबरी करने, उसे नीचा दिखाये जाने हेतु इस ईर्ष्या को शस्त्र बनाकर बड़े-बड़े अखबारों-चैनलों में अपना लोहा मनवा सके।
गधों पर लदे बोझ बेईमानी के सच्चे ग्राहक यहॉ के प्राय: सभी व्यापारी है जो गधे की बेईमानी का बोझ कम करके वह सारा बोझ आमजनता पर लाद चुके है। इसमें व्यापारी बेईमानी करने में दुष्टता की सारी सीमायें लॉघ कर अधिकांश खाद्य सामग्री में शत प्रतिशत मिलावट करके अमानवीय बन धीमा जहर- रासायनिक मिलाकर मुनाफा कमाने में भूल चुके है कि इससे ग्राहकों का स्वास्थ्य खराब होने के साथ उनकी मौत भी हो सकती है, पर वे बेईमानी में दुष्टता छोड़ने को तेयार नही है। इसी क्रम में डाक्टर जो भगवान का रूप माना जाता था, वह शरीर को बीमारी से मुक्त करने की बजाय ज्यादा फायदेमंद इलाज कर मिनिटों की बीमारी को सालों शरीर में स्थान दिलाकर अमानवीय हो लोगों को हमेशा बीमार करने वाले इलाज करके इन गधों के पीठ से बेईमानी का बोझ कम कर इलाज में दुष्टता की सारी हदों को पार कर अपनी तिजौरियॉ भरने में लगाा है। गधे का अंतिम पांचवा बोझ कुटिलता एवं छल को इन सबके वर्गो ने भले थोडा अपनाया है पर नब्बे प्रतिशत यह नारियों ने अपना अस्त्र बना नारी जाति को बदनाम कर दिया है।
कभी कभार कोई गधा अपने दिमाग का इस्तेमाल करता है तब वह अपने पीठ पर लदे बोझों को कम करने की बहादुरी दिखाता है। घमंड लदा होने पर वह अपनी दुलत्ती से घायल कर शहर के विशेष आवारा, बदचलन युवाओं के घमंड को चूर-चूर कर सबक सिखाता है, यह बात श्री थुदगल जी की पोस्टों से समझी जा सकती है। श्री थुदगल जी एक कुशल गधा मर्मज्ञ है, अगर आपका मस्तिष्क काम करता है तो उनकी पिछले 10 सालों में गधों की पोस्ट देखें तो पता चल जायेगा कि कौन किस प्रकार के बोझ से दबा है या मुक्त हो चुका है। बताना आवश्यक है कि गधों की पोस्ट के साथ मैंने कुत्तों, सुअरों, सॉड़ों और निरीह गायों की पोस्टों पर भी अपना चिंतन जारी रखा है ताकि उनके ज्ञान की त्रिवेणी में आपका मस्तिष्क भी गीला हो जाये। श्री थुदगल जी पशुओं की पोस्ट ही नहीं करते, बल्कि उनका संरक्षण कर उनके अधिकारों के प्रति भी सजेत कर अलग तरह से कमेंटस करते है ताकि आप पढ़ने के बाद अपनी बुद्धि के तारों का कनेक्शन ढीला होने पर टाईट कर लें, ताकि आप की बुद्धि लाचारी के ऑसूं न बहाये, जैसा कि इन गधों के बहते ऑसूओं की चिंता किसी को नहीं होती है, पर श्री थुदगल जी उनके ऑसूओं की खबर कर अपना मनुष्यधर्म निभाकर जीवित होने का परिचय देते है।
गधों के ऑसूओं की बात हो रही है तो चलते चलते नेताओं के ऑसूओं का जिक्र भी हो जाये। एक दलबदलू नेता की हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो जाने पर उनकी आंखों से निरंतर अश्रुधार बहने लगी, जो बंद होने का नाम नहीं ले रही थी तब कुछ पत्रकारों ने इन आँसुओं को असली बताकर उन काले आंसुओं की स्याही से अपना अखबार छापकर स्याही की बचत की। पता चला कि नेताओं के ऑसू नकली थे, उन्हें अखबार वालों ने बेशकीमती बताकर अपना अखबार चमका कर खूब वाहवाही लूटकर इन आंसुओं का व्यापार कर लाखों रुपये भावनाओं के सागर में जनभावनाओं को डुबोकर कमा लिये। जनता को जनभावनाओं के साथ छल किये जाने का पता चला, जनता नेता के पैदा होने से उसके नेतागिरी कर राजनीति में चुने जाने तक उसकी चाल-ढाल से परिचित थी। सभी ने एक स्वर में विद्रोह कर सरकार को चेताया कि यह नेता अपने नकली ऑसू असली दामों में बेचकर हमारी जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
सरकार नकली ऑसूओं को असली दामों में बेचने के षड़यत्र से सॅख्त हो गयी, तत्काल गृहमंत्री ने पुलिस कप्तान को फोन लगाकर नकली ऑसू बेचने वाले नेता और खरीदने वाले पर अपराध दर्ज करने के निर्देश दिये, जॉच शुरू हुई, कार्यवाही होती उससे पूर्व पता चला कि नकली ऑसू असली दामों पर बेचने वाला नेता सरकार में शामिल हो गया जिसके ही दम पर यह सरकार चल रही है, बाद में अगले दिन प्रेस काम्फ्रेस में सरकार के मुखिया के साथ पूरा मंत्रीमण्डल और नकली ऑसू असली दामों पर बेचने वाले नेता आये तथा मीडिया के समक्ष नकली ऑसू बेचने के आरोप को बिलकुल बेबुनियाद निराधार एवं विपक्ष की साजिस बताकर मामले का पटाक्षेप कर देता है साथ ही जिलेे के कलेक्टर को आदेश दिया कि गधों पर लदे किसी भी तरह का बोझ का नेताओं, व्यापारियों या अन्य से लेना देना नहीं है, यह विदेशी षड़यंत्र है जो देश की राजनीति को बदनाम कर गधों को सहानुभूति दिलाना चाहते है।
आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार,
श्रीजगन्नाथधाम, काली मंदिर के पीछे, ग्वालटोली
नर्मदापुरम मध्यप्रदेश मोबाइल 9993376616