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बकहो नगर परिषद: जनता के पैसों पर सियासी सौदागर!

करोड़ों की योजनाएं बनीं भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला

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बकहो नगर परिषद: जनता के पैसों पर सियासी सौदागर!

 

करोड़ों की योजनाएं बनीं भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला

 

शहडोल ज्ञानेन्द्र पांडेय 7974034465

विकास की जगह विनाश का दृश्य नगर परिषद बकहो मध्यप्रदेश के छोटे से नगर में बीते कुछ वर्षों से विकास की आड़ में जो कार्य हो रहे हैं, वह अब सिर्फ “घोटाले” के नाम से पहचाने जा रहे हैं। करोड़ों रुपये की सार्वजनिक धनराशि जल परियोजनाओं, पार्क निर्माण और वृक्षारोपण जैसे कार्यों में स्वीकृत की गई, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका अंजाम ‘लीकेज’, ‘झाड़ियाँ’ और ‘जहर घुला पानी’ बन चुका है। यह मामला अब सिर्फ एक निकाय की लापरवाही नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन, नीति और नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

 

लीकेज से बहती व्यवस्था: करोड़ों की जल परियोजना फेल

 

वार्ड क्रमांक 15 में बना करोड़ों रुपये का स्टोरेज टैंक लीकेज से इतना खराब हो चुका है कि उपयोग तो दूर, उसका संरक्षण ही असंभव है।वार्ड क्रमांक 3 में अधूरा निर्माण आज तक पूरा नहीं हो सका; वहां जल आपूर्ति कभी शुरू ही नहीं हुई।स्थानीय पार्षदों और नागरिकों की कई बार की शिकायतों को भी परिषद और प्रशासन ने जानबूझकर नजरअंदाज किया।

 

पेपर पर परियोजना पूरी, ज़मीन पर अधूरी

 

एक प्रभावशाली जनप्रतिनिधि ने ठेकेदार को फायदा पहुँचाने के लिए टेंडर की लागत मनमाने ढंग से बढ़ाई।जल गुणवत्ता की कोई जांच नहीं हुई, जबकि क्षेत्र में ओरियंट पेपर मिल से भूजल पहले से ही प्रदूषित है।टेंडर शर्तों का उल्लंघन कर कार्य फर्जी फर्म को सौंपा गया, और राजनीतिक दबाव में भुगतान भी स्वीकृत कराए गए।

 

 

हरियाली के नाम पर हरा घोटाला: पार्क नहीं, गाजर घास का खेत

 

लाखों की लागत से बनाए गए पार्क अब सिर्फ गाजर घास, कूड़े और झाड़ियों के अड्डे बन चुके हैं।

न बच्चों के लिए झूले, न बैठने की सुविधा, न पथ निर्माण — सिर्फ दिखावे की योजना।

नागरिकों ने स्पष्ट रूप से कहा: “यह पार्क नहीं, घोटाले की पहचान है।”

 

 

ठेकेदार भी वही, पार्षद भी वही” कानून की खुली अवहेलना

 

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, एक पार्षद ने अपनी ही फर्म के नाम से टेंडर भरा और कार्य भी स्वयं कराए।यही नहीं, बिल पास करवाने से लेकर भुगतान तक में उस जनप्रतिनिधि की भूमिका प्रत्यक्ष बताई जा रही है।यह सीधा हितों के टकराव का मामला है, जो नगर पालिका अधिनियम का उल्लंघन है।

 

जनसुरक्षा से खिलवाड़: भू-धंसाव वाली ज़मीन पर भारी निर्माण

 

जहां पहले भू-धंसाव के खतरे से शासकीय स्कूल बंद किया गया, उसी स्थल के पास करोड़ों की लागत से पार्क बना दिया गया।

पास ही का क्रशर प्लांट भी इसी कारण बंद हुआ था। अब वहां जनता को खतरे में डालकर निर्माण कार्य कराया गया।

प्राकृतिक जोखिम की अनदेखी, सिर्फ कमीशन और ठेकेदारी के लाभ के लिए।

 

शिकायतें दर्ज, लेकिन कार्रवाई ठप

 

वार्ड क्रमांक 4 की पार्षद रेखा महेन्द्र सिंह ने दिनांक 23/04/25 को नगरीय प्रशासन विभाग, भोपाल को लिखित शिकायत भेजकर उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।उन्होंने कहा:ना स्थल की उपयुक्तता देखी गई, ना जल गुणवत्ता की जांच। यह संपूर्ण परियोजना भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है।”

 

सेवा पखवाड़ा: सेवा कम, शोबाजी ज़्यादा

 

भाजपा द्वारा आयोजित “सेवा पखवाड़ा” सिर्फ सोशल मीडिया प्रचार तक सीमित रहा।

जनप्रतिनिधियों ने कैमरे के सामने झाड़ू लगाई, लेकिन सफाई, सुधार या रख-रखाव का कोई साक्ष्य नहीं।स्थानीय लोगों का कहना है “फोटो खिंचवाकर चले जाते हैं, असली सेवा कभी नहीं दिखती।”

 

वृक्षारोपण के नाम पर “शवगुल्म” (मरे हुए पौधे)

 

श्रीवास्तव मोड़ से लेकर वार्ड 15 तक हजारों पौधे लगाए जाने का दावा।ज़मीन पर नतीजा: एक भी जीवित पौधा नहीं।“एक पेड़ मां के नाम” जैसी नेक योजनाओं को भ्रष्टाचार की खाद में सड़ा दिया गया।पार्टी की छवि पर सीधा आघात: भाजपा के नाम पर भ्रष्टाचारआरोपी जनप्रतिनिधि अब भाजपा का झंडा थाम चुके हैं, जबकि पहले निर्दलीय थे।

इनके कारण भाजपा की “विकास”, “सुशासन”, “हरित क्रांति” जैसी योजनाएं जनता में निरर्थक और खोखली प्रतीत हो रही हैं।यदि पार्टी नेतृत्व ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया, तो स्थानीय चुनावों में भारी विरोध सामने आ सकता है।

जब प्रतिनिधि ठेकेदार बन जाएं, और अफसर मूकदर्शक तब जनता का विश्वास दरकता है, और लोकतंत्र खोखला होता है।

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