सुश्री भक्ति दुवेदी जी
ग्राम पंचायत भुईगांव में आयोजित संगीतमय भागवत कथा महोत्सव का आयोजन राजकुमार साहू जी के मध्यम से किया जा रहा है भागवत कथा मे यजमान श्री राजकुमार साहू जी एवं श्री सनत यादव जी महोत्सव के छठे दिवस के पावन अवसर पर कथा व्यास सुश्री व्दिवेदी जी (बलौदा बाज़ार)द्वारा उपस्थित श्रोता समाज एवं श्रद्धालु भक्त जनों को संबोधित करते हुए कहा कि जो व्यक्ति इतना कंजूस होता है की दान देने से बचने के लिये वह जीवन दांव पर लगा देता है छठे दिवस के प्रसंग में श्री कृष्ण रूख्मणी विवाह की भब्य झांकी निकली गई जिसमें कृष्ण जी की भूमिका श्री राजू साहू जी (लोहर्सी एवं रूख्मणी श्रीमती गीता साहू जी )विवाह समारोह शामिल ग्राम से आये भक्तगण श्री धुरू कुमार कैवर्त्य जी ,बलराम टंडन जी ,ईश्वर केवट जी ,राजन कैवर्त्य जी, हरदयाल पैकरा जी ,कुंज रस्म कवर जी ,देवचारण श्रीवास जी ,केशव प्रसाद पैकरा जी ,तिहारु साहू जी (लोहासी) ,रवि साहू जी ,राजू साहू जी ,रामायण यादव जी ,मनहरण यादव जी ,एवं गाँव के सभी माता बहनें नाच गान के साथ हार्स उल्लास के साथ श्री कृष्णा रुख्मणी विवाह में शामिल हुये।: भागवत कथा में हुआ श्री कृष्ण रुक्मिणी विवाह
पामगढ़। भुईगांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का प्रसंग सुनाया गया। कथावाचक सुश्री भक्ति द्विवेदी जी ने रास पंचाध्यायी का वर्णन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ठाकुरजी के गीतों को गाने से सहज भक्ति की प्राप्ति होती है। इस दौरान धन को परमार्थ में लगाने की सलाह दी गई।
उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, उद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया।
कथा के दौरान कथा प्रवक्ता भक्ति दिवेदी जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान का प्रथम विवाह विदर्भ की राजकुमारी रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ। इस कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नही सकती यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नहीं तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए।