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नन्ही बच्ची के आंसू की कीमत 6 लाख: बंद कमरे में डील।

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नन्ही बच्ची के आंसू की कीमत 6 लाख: बंद कमरे में डील।

 

सिंगरौली, 23 जून 2025: परसौना-खुटार मुख्य मार्ग पर एक दुखद सड़क हादसे ने न केवल एक परिवार को उजाड़ दिया, बल्कि प्रशासन, कॉरपोरेट और स्थानीय नेतृत्व की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। इस हादसे में अडानी कंपनी की कोयले से लदी तेज रफ्तार हाईवा ने दूध बेचने जा रहे पन्नालाल पाल को कुचल दिया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। हादसे के बाद प्रशासन और कंपनी ने कथित तौर पर बंद कमरे में 6 लाख रुपये की मुआवजा राशि तय की, जिसके बाद मामला शांत कर दिया गया।

 

परसौना-खुटार मार्ग, जो सिंगरौली के कोयला खनन क्षेत्र से होकर गुजरता है, लंबे समय से भारी वाहनों की आवाजाही और तेज रफ्तार के कारण दुर्घटनाओं का गढ़ बना हुआ है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पन्नालाल पाल सुबह अपने दैनिक कार्य के लिए निकले थे, जब अडानी कंपनी की हाईवा ने उन्हें टक्कर मार दी। हादसा इतना भीषण था कि पन्नालाल की मौके पर ही मौत हो गई।

 

हादसे के बाद स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया। सूत्रों के अनुसार, प्रशासन और अडानी कंपनी के इशारों पर काम करने वाले मृतक के परिवार से बंद कमरे में बातचीत की। इस बैठक में परिवार को 6 लाख रुपये का मुआवजा देने पर सहमति बनी, जिसके बाद मामला दब गया। हालांकि, इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और प्रशासनिक जल्दबाजी ने कई सवाल खड़े किए हैं।

 

हादसे के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि अडानी कंपनी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई। स्थानीय लोगों का आरोप है कि कंपनी के भारी वाहन बिना किसी नियमन के तेज रफ्तार से सड़कों पर दौड़ते हैं, जिसके कारण आए दिन हादसे होते हैं। इसके बावजूद, न तो कंपनी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई होती है और न ही वाहनों की गति पर नियंत्रण के लिए कोई कदम उठाए जाते हैं।

 

स्थानीय नेतृत्व की चुप्पी

हादसे के बाद क्षेत्रीय विधायक और देवसर विधानसभा के कथित ‘विकास पुरुष’ डॉ. राजेंद्र मेश्राम की अनुपस्थिति ने भी चर्चा को जन्म दिया। घटनास्थल पर न पहुंचने के कारण उनकी जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और निष्क्रियता के कारण कॉरपोरेट्स की मनमानी बढ़ती जा रही है। एक युवक ने यह भी कहा कि विधायक के बेटे की अडानी कंपनी में ठेकेदारी चल रही है इसलिए वह कुछ नहीं बोल पाएंगे।

 

पन्नालाल पाल की मौत केवल एक सड़क हादसा नहीं, बल्कि सिंगरौली में कॉरपोरेट्स की मनमानी, प्रशासनिक लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता का प्रतीक है। यह घटना एक बार फिर सवाल उठाती है कि क्या इंसानी जिंदगी की कीमत कुछ लाख रुपये में तौली जा सकती है? और क्या सिंगरौली के लोग अपनी सड़कों पर सुरक्षित रहने का हक कभी हासिल कर पाएंगे?

जब तक ठोस नीतिगत कदम और जवाबदेही तय नहीं होती, तब तक सिंगरौली की सड़कें खामोश गवाह बनकर ऐसी त्रासदियों को देखती रहेंगी।

बार-बार सरकार से अनुरोध करने के बावजूद कोयला ढोने के लिए अलग सड़क का निर्माण नहीं किया जा रहा है जिसके कारण प्रतिदिन लोग मर रहे हैं

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