“बरसात होते ही जलमग्न हो जाती है लौहनगरी की 55 वर्षीय पुरानी डाकघर”
प्राईम संदेश न्यूज़ से शेखर दत्ता की रिपोर्ट
किरंदुल (दंतेवाड़ा)
(कभी दूसरों का सहारा बनने वाली डाकघर अब खुद है बेसहारा)
डाकविभाग की लापरवाही ग्राहकों को पड़ सकती है भारी”
किरंदुल (प्राईम संदेश) लौह नगरी किरंदुल में वर्षो पूर्व यहां के रहवासियों के लिए लाईफ लाईन माने जाने वाली डाकघर आज बेसहारा अपने अस्तित्व को बचाने में लगी है। एनएमडीसी खदान के प्रारंभिक दौर पर भारत के कोने-कोने से आए कर्मचारी एवं व्यापारियों के लिए अपने गृह ग्राम अपने परिवार जनों से संपर्क बनाने के लिए एकमात्र जरिया भारतीय डाक विभाग ही था। उस दौरान ना तो मोबाइल थी, ना लैपटॉप न ही इंटरनेट लोग अपने परिजनों की हाल-चाल जानने के लिए खतो का इंतजार हफ्तों भर किया करते थे। उस समय यह डाकघर यहां काम करने वाले कर्मचारी को अपने परिवार से जोड़ने का महत्वपूर्ण काम किया करती थी। परंतु आज वह अपनी अस्तित्व खोने की कगार पर है। लगभग 55 वर्ष बीतने के बाद भी किरंदुल डाकघर उसी भवन में संचालित है जो की आज की तारीख में बिल्कुल जर्जर अवस्था में है बरसात होते ही बारिश का पानी पूरे डाकघर के अंदर प्रवेश कर जाता है ।यहां तक कि ग्राहकों को पानी के अंदर से होकर डाकघर की खिड़की तक जाना पड़ता है। बारिश की वजह से डाकघर के दिवारों खराब हो गई है। डाकघर के जरूरी डॉक्यूमेंट खराब होने की आशंका बनी हुई हैं। डाकविभाग की इस लापरवाही से ग्राहकों का बड़ा नुकसान हो सकता है। 55 वर्षों में लौह नगरी कहां से कहां पहुंच गई, परंतु डाकघर आज भी उसी पुराने भवन में ही संचालित की जा रही है। जिससे ग्राहकों के साथ-साथ डाकघर के कर्मचारियों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पूरे बरसात में डाकघर इसी हालत में संचालित होती रही। नगर वासियों की इस असुविधा को देखते हुए, एनएमडीसी मे