*: पुलिसिया दबाव में पत्रकारिता पर प्रहार, स्याही से निकला आक्रोश का तूफान*
सिवनी जिले में निष्पक्ष पत्रकारिता की कलम पर अब पुलिसिया रौब की छाया पड़ती नज़र आ रही है। वरिष्ठ पत्रकार अजय ठाकरे पर पुलिस द्वारा मामला दर्ज किया जाना मानो आग में घी डालने जैसा रहा — इस घटना ने पत्रकार समुदाय के मन में रोष की लहर पैदा कर दी है। कलम के सिपाहियों ने आज पुलिस अधीक्षक सिवनी एवं SDM लखनादौन को ज्ञापन सौंपकर निष्पक्ष जांच की मांग की और कहा कि यदि पत्रकारों को सत्य दिखाने की सजा दी जाएगी तो “सच” दम तोड़ देगा। पत्रकारों ने कटाक्ष भरे स्वर में कहा कि “अब खबर लिखना आसान नहीं रहा, क्योंकि खबर छपने से पहले ही खाकी का कहर बरपने लगा है।” वहीं, दूसरे ज्ञापन में पत्रकारों ने उन असामाजिक तत्वों पर भी कार्रवाई की मांग की जो झूठी FIR और शिकायतों के माध्यम से पत्रकारिता को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं। कुल मिलाकर, अब हालात ऐसे हैं कि “कलम की ताकत” से डरने वाले, उसे हथकड़ी में जकड़ने की कोशिश कर रहे हैं, परंतु पत्रकारों ने स्पष्ट कर दिया है — “सच को बंद नहीं किया जा सकता, चाहे सलाखें ही क्यों न लगानी पड़ें।”
: *सिवनी में पत्रकार पर दर्ज प्रकरण पर उठे सवाल — नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने की नाम हटाने की सिफारिश, पुलिस की भूमिका पर भी उठी उंगली*
सिवनी जिले में दर्ज प्रकरण क्रमांक 899/2025, धारा 324(4), 351(3) एवं 191(2) के तहत दायर मामले में पत्रकार श्री अजय ठाकरे का नाम हटाने को लेकर अब राजनीति गरमा गई है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने न केवल पुलिस महानिदेशक को बल्कि मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखकर यह स्पष्ट किया है कि अजय ठाकरे का घटना से कोई संबंध नहीं था, वे तो मौके पर केवल “न्यूज़ कवरेज” के उद्देश्य से उपस्थित थे। सिंघार ने पत्र में यह भी लिखा कि पत्रकारिता का दायित्व निभाने वाले व्यक्ति को आरोपित बनाना न केवल न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रहार है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सिवनी पुलिस किसी दबाव में काम कर रही है या फिर पत्रकारों को सच दिखाने की सजा दी जा रही है? प्रदेश की राजनीति में यह पत्र हलचल मचा रहा है, क्योंकि विपक्ष ने इसे प्रशासनिक निष्पक्षता पर सीधा हमला बताया है।
: *हवाला कांड के सच से बौखलाई पुलिस, अब पत्रकारिता पर चला रही बदले की कलम*
गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व सिवनी जिले में 2 करोड़ 96 लाख रुपए की हवाला लूट कांड ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया था, जिसमें पुलिस विभाग की अनुभागीय अधिकारी पूजा पांडे एवं 11 पुलिसकर्मियों पर गंभीर आरोप लगे थे। इस पूरे मामले को उजागर करने में दैनिक सिवनी न्यूज़ के संपादक अजय ठाकरे, महाकौशल के समीम भाई, शरद और भाई बिट्टू ज़ख्म की भूमिका अहम रही थी। लेकिन सत्य को सामने लाना शायद पुलिस विभाग को रास नहीं आया। प्रधान आरक्षक योगेश राजपूत को नोटिस देने बालाघाट पहुंची पुलिस की कवरेज करना जहां अजय ठाकरे का पत्रकारिता धर्म था, वहीं उसी को पुलिस ने अपराध बना दिया। आश्चर्य तो यह है कि सच की आवाज़ उठाने वाले पर ही मामला दर्ज कर दिया गया — यह वही पुलिस है जो अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए “सच” को ही कटघरे में खड़ा कर रही
है। जनता और पत्रकार जगत इस घटना को स्पष्ट रूप से “बदले की कार्रवाई” मान रहा है। आज स्थिति यह है कि कलम की धार से डरने वाले खाकीधारी, अब स्याही को अपराध घोषित करने पर तुले हुए हैं — मानो सच्चाई बोलना अब पुलिस के राज में गुनाह हो गया हो।