बकहो नगर परिषद में भ्रष्टाचार की कहानी जारी: करोड़ों में बना पार्क आज भी उपेक्षित, जिम्मेदार बेखौफ
ज्ञानेंद्र पांडेय 7974034465
शहडोल, बकहो।बकहो नगर परिषद में सरकारी धन के दुरुपयोग और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भ्रष्टाचार की परतें अब और भी उजागर हो रही हैं। करोड़ों की लागत से निर्मित तथाकथित “पार्क” आज भी गाजर घास और उपेक्षा का पर्याय बना हुआ है। नागरिकों को राहत देने की बजाय, यह स्थल एक भ्रष्ट तंत्र का स्थायी प्रतीक बनता जा रहा है — जहां जिम्मेदार लोग सवालों से बचते हैं, और जनहित दम तोड़ता है।
सेवा पखवाड़ा का दिखावा, धरातल पर शून्य
बीते सेवा पखवाड़ा की तरह इस बार भी भाजपा नेताओं ने उसी उपेक्षित पार्क में पहुंचकर औपचारिकताएं निभाईं, फोटो खिंचवाईं, और सोशल मीडिया पर प्रचार कर आगे बढ़ गए। साफ-सफाई, बच्चों के लिए खेल सामग्री, पथ-प्रकाश या हरियाली को लेकर कोई ठोस कार्य अब तक नहीं किया गया। सवाल उठता है क्या सेवा पखवाड़ा केवल कैमरों और पोस्टरों तक सीमित रह गया है?
पार्षद या ठेकेदार? टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, नगर परिषद के एक प्रभावशाली जनप्रतिनिधि द्वारा ही अपनी फर्म से टेंडर भरवाकर निर्माण कार्य कराए गए। यह साफ तौर पर नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 28(1) का उल्लंघन है, जिसमें पद पर रहते हुए निजी फर्म से लाभ लेना अवैध माना गया है। लेकिन बकहो में यह कानून महज़ एक कागजी दस्तावेज़ बनकर रह गया है।
यह भी सामने आया है कि टेंडर प्रक्रिया में एक गठजोड़ कंपनी सक्रिय है, जो टेंडर डालने से लेकर भुगतान पास कराने तक पूरी व्यवस्था को प्रभावित कर रही है। इससे न सिर्फ पारदर्शिता पर प्रश्न खड़े होते हैं, बल्कि पूरे नगर परिषद की साख पर भी दाग लगता है।
खतरनाक ज़मीन पर निर्माण, जान जोखिम में
जिस ज़मीन पर यह पार्क बना है, उसके ठीक बगल में पहले एक शासकीय विद्यालय था, जिसे भूमि धंसने के कारण खतरनाक घोषित कर बंद कर दिया गया था। इस तथ्य को नजरअंदाज कर उसी क्षेत्र में निर्माण कार्य कराना न सिर्फ तकनीकी चूक है, बल्कि जन सुरक्षा के साथ सीधा खिलवाड़ भी है। यदि भविष्य में कोई हादसा होता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
भाजपा की छवि पर प्रश्नचिन्ह
भाजपा एक अनुशासित और राष्ट्रहित की राजनीति करने वाली पार्टी मानी जाती है। लेकिन जब ऐसे विवादास्पद व्यक्ति संगठन में प्रवेश कर, बिना अनुभव और समझ के निर्णय लेते हैं, तो इससे पार्टी की नीतियों और जनविश्वास दोनों को आघात पहुँचता है। सेवा की जगह स्वार्थ, और उत्तरदायित्व की जगह प्रचार यही बकहो परिषद की वर्तमान पहचान बनती जा रही है।
अब जरूरी है न्यायिक जांच और सार्वजनिक जवाबदेही
यह मामला सिर्फ एक पार्क या एक नगर परिषद का नहीं रहा। यह सवाल उठाता है कि क्या लोकतंत्र में जिम्मेदार जनप्रतिनिधि अपनी पद की आड़ में खुद ही ठेकेदार बन सकते हैं? क्या प्रशासन, चुनाव आयोग और भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं आंखें मूंदे रहेंगी?
“लोकतंत्र तभी जीवित रहता है, जब जनता जागरूक हो और सत्ता जवाबदेह। बकहो का यह प्रकरण पूरे सिस्टम के लिए एक चेतावनी है — अब भी अगर आंखें नहीं खुलीं, तो अगली बार सवाल सिर्फ पार्क पर नहीं, पूरी व्यवस्था पर होंगे।”