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रायसेन के ऐतिहासिक क़िले से आज भी रोज़ादारों को तोप की गूंज से मिलती है सेहरई और इफ्तार की सूचना,

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माह रमजान स्पेशल स्टोरी

रायसेन।रायसेन के ऐतिहासिक क़िले से आज भी रोज़ादारों को तोप की गूंज से मिलती है सेहरई और इफ्तार की सूचना,रायसेन किले पर लगभग 200 साल से रोजेदारों के लिए निभाई जा रही अनूठी परंपरा नवाबी

*दैनिक प्राईम संदेश जिला ब्यूरो चीफ राजू बैरागी जिला *रायसेन*

 

शासनकाल में शुरू हुई ये परंपरा आज भी लगातार जारी है जिला प्रशासन द्वारा दी जाती है रमजान माह के लिए तोप चलाने की अनुमति

 

देखिए एक स्पेशल रिपोर्ट….,

Vo-1-रमजान का पवित्र माह शुरू हो चुका है ।मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा अल्लाह ताला की इबादत में रोजे रखे जा रहे हैं। इस पूरे पवित्र माह रोजेदारों के लिए सेहरी और इफ्तार का समय सबसे अहम होता है।आजकल जहां आधुनिक संसाधनों से सेहरई और इफ्तारी की सूचना देने का चलन है। वहीं,मप्र का रायसेन जिला ऐसा है जहां आज भी परंपरागत और अनूठे तरीके से सेहरई और इफ्तारी की सूचना रोजेदारों पहुंचाई जाती है।जिसके तहत रायसेन के ऐतिहासिक किले पर सेहरई से पहले और शाम को इफ्तारी के वक्त तोप दागने की परंपरा है।जो आज से नहीं करीब 200 साल सेपुरानी बेमिसाल परंपरा चली आ रही है। यही नहीं यहां हिंदू परिवार के सदस्य भी ढोल पीटकर रोजेदारों को जगाते हैं।

Vo2-मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 47 km दूर रायसेन जिला किले की पहाड़ी तले बसा हुआ है।यहां रमजान माह में सुबह लगभग बजे और शाम के वक्त अगर कोई बाहरी शख्स पहुंच जाए तो वह यहां गूंजने वाली तोप की आवाज से न केवल चौंक जाएगा।बल्कि किसी आशंका का अनुमान भी लगा बैठेगा। लेकिन,हकीकत इससे कहीं अलग है। दरअसल,यहां रमजान माह के पवित्र दिनों में इफ्तारी और सेहरी की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी से 2 वक्त तोप चलाई जाती है।

15 किमी दूर तक गूंजती है तोप…

जिसकी आवाज सुनकर शहर सहित आसपास के लगभग 12 गांवों के रोजेदार रोजा खोलते हैं ।और इस तोप की आवाज भी लगभग 15 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है।शहर काजी जहीर उद्दीन मुस्लिम त्यौहार कमेटी रायसेन के सदर अच्छे खान ने बताया कि यह परंपरा नवाबी शासनकाल से चली आ रही है ।रमजान महीने में जब सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए कोई साधन नहीं हुआ करते थे।करीब 200 साल पहले रायसेन किले पर राजा और नवाबों का शासन हुआ करता था। उन दिनों से ही लोगों को सूचित करने के लिए तोप के गोले दागे जाने की शुरुआत हुई थी।इसके बाद साल 1936 में भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान साहब ने बड़ी तोप की जगह एक छोटी तोप चलाने के लिए दी।इस तोप को सिप्पा भी कहा जाता है।इसके पीछे वजह यह थी कि बड़ी तोप की गूंज से किले को नुकसान पहुंच रहा था।रायसेन के किले से इस तोप को चलाने की प्रक्रिया भी कम रोचक नहीं है।दरअसल, इसके लिए जिला प्रशासन बाकायदा एक माह के लिए लाइसेंस जारी करता है।तोप चलाने के लिए आधे घंटे की तैयारी करनी पड़ती है।इसकै बाद तोप दागी जाती है।जब रमजान माह समाप्त हो जाता है तब तोप की साफ-सफाई कर सरकारी गोदाम में जमा कर दी जाती है। पूरे महीने तोप दागने में करीब 70 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं।

Vo3-तोप चलाने से पहले दोनों टाइम टांके वाली मरकाज वाली मस्जिद से रंगीन बल्ब जलाकर सिग्नल मिलता है।

राजस्थान के बाद दूसरे रायसेन शहर में तोप चलाई जाती है….

सिग्नल के रूप में मस्जिद की मीनार पर लाल या हरा रंग का बल्ब जलाया जाता है।उसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है। ऐसा बताया जाता है राजस्थान में तोप चलाने की परंपरा है।उसके बाद देश में मप्र का रायसेन ऐसा दूसरा शहर है जहां पर तोप चलाकर रमजान माह में सेहरी और इफ्तारी की सूचना दी जाती है।

तोप चलाने बाले शाखावत ख़ान बताते हैं कि तोप चलने की परंपरा तो राजा और नवाबी शासनकाल से चली आ रही है।पहले बड़ी तोप चलाई जाती थी।जिसकी गूंज कई किलोमीटर दूर तक जाती थी। लेकिन उसकी आवाज काफी तेज गूंजती थी और उससे किले को क्षति होने की आशंका था।ऐसे में 1936 से छोटी तोप चलाई जाती है। जिसे भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह ने दी थी तब से अब तक 87 साल से यही छोटी तोप चलाई जाती रही है।वहीं शखावत ख़ान कहते है हमारे पुरखे सदियों से तोप चलाने का काम करते आ रहे है। पहले हमारे पर दादा फिर पर दादा फिर हमारे पिताजी उसके बाद हमारे चाचा और में और मेरा छोटा भाई साहिद पिछले 27 सालों से तोप चलाकर रोजा अफतारी और सहरई की सूचना दे रहे है ।फिर हमारे बाद हमारे बच्चे तोप चलाने का काम करेंगे।वहीं भोपाल से तोप चलने का साक्षी बनने आए शफीक ख़ान कहते है ये बहुत अच्छा पल होता है। जब हम तोप चलने के साक्षी बनते है।

रायसेन के सैयद ओसाफ़ कहते है कि हमारे रायसेन के लिए गौरव की बात है कि रायसेन में तोप चलाकर सहरई और अफ्तारी की जानकारी दी जाती है।मोहम्मद सहीद कहते है की तोप चलाकर सहरई और अफ़्तारी कराई जाती है।

 

01-बाइट-शाखावत खान

तोप चलाने बाले।

 

02-बाइट-मोहम्मद साहिद

तोप चलाने के सहयोगी

 

03-बाइट-सैयद ओसाफ़

शाखावत के साथी

 

04-बाइट-शफीक खान

भोपाल से आए युवक।

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