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सिवनी लूटकांड में हड़कंप: जनता की एफआईआर मांग के बीच पुलिस कप्तान ने की “गलत सर्जरी

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सिवनी लूटकांड में हड़कंप: जनता की एफआईआर मांग के बीच पुलिस कप्तान ने की “गलत सर्जरी”!

दैनिक प्राइम संदेश सिवनी संवाददाता योगेश गढ़वाल 9981781200

सिवनी जिले में 2 करोड़ 96 लाख रुपए की लूट के गंभीर आरोपों ने पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में सनसनी मचा दी है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र के जालना निवासी सोमल परिहार ने सिवनी की सीएसपी पूजा पांडे और अन्य पुलिसकर्मियों पर इस बड़ी रकम की लूट का आरोप लगाया है। इस प्रकरण में जनता का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है और सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक एफआईआर दर्ज करने की मांग तेज हो गई है। वहीं, पुलिस कप्तान सुनील कुमार मेहता ने व्यवस्थाओं को “सुचारू” करने के नाम पर कई थानों में तबादलों की बौछार कर दी, जिसे जनता “गलत सर्जरी” बता रही है। निरीक्षक खेमेंद्र जैतवार को छपारा से घंसौर, प्रीतम सिंह तिलागाम को रक्षित केन्द्र से छपारा, चैनसिंह उईके को रक्षित केन्द्र से लखनवाड़ा, लक्ष्मण सिंह झारिया को घंसौर से डीएसबी सिवनी, और उपनिरीक्षक मनोज जंघेला को डूंडासिवनी से बंडोल थाना प्रभारी बनाया गया है। लेकिन इन तबादलों से जनता का भरोसा लौटता नहीं दिख रहा—क्योंकि लोगों की स्पष्ट मांग है: “तबादले नहीं, दोषियों पर एफआईआर होनी चाहिए!

सिवनी लूटकांड पर बड़ा सवाल: आम नागरिक होता तो जेल में, पर CSP पूजा पांडे पर FIR अब तक क्यों नहीं?

2 करोड़ 96 लाख रुपए की लूट अगर किसी आम नागरिक ने की होती तो पहले एफआईआर दर्ज होती और बाद में जांच होती, लेकिन चूंकि इस मामले में आरोपी सिवनी की सीएसपी पूजा पांडे और उनके सहयोगी पुलिसकर्मी हैं, इसलिए कानून का तराजू अब तक झुका हुआ नजर आ रहा है। डीजीपी भोपाल कैलाश मकवाना के आदेश पर इन अधिकारियों को निलंबित किया गया है — मतलब कुछ तो संदिग्ध पाया गया होगा, तभी इतनी बड़ी कार्रवाई हुई! फिर सवाल उठता है कि जब सस्पेंशन हो सकता है तो एफआईआर क्यों नहीं? आखिर क्यों पूजा पांडे और उनके साथियों को अब तक सलाखों के पीछे नहीं भेजा गया? जबलपुर एडिशनल एसपी आयुष गुप्ता इस पूरे प्रकरण की जांच कर रहे हैं और जल्द ही आईजी जबलपुर को रिपोर्ट सौंपी जाएगी, मगर जनता पूछ रही है — क्या पुलिस अधिकारी अपने ही साथी पुलिस अधिकारियों की निष्पक्ष जांच कर पाएंगे? और सबसे बड़ा सवाल यह कि 2 करोड़ 96 लाख की यह रकम आखिर किस रास्ते से व्हाइट मनी बनकर किसी बिजनेसमैन तक पहुंचेगी? पूरे प्रदेश की निगाहें अब इस जांच पर टिकी हैं, लेकिन न्याय की आस में जनता का सब्र टूटता जा रहा है।

खबर एक नजर में: ईमानदारी की सजा? लखनवाड़ा थाना प्रभारी चंद्रकिशोर सिरामे का निलंबन व्यवस्था सुधार पर सवाल खड़ा करता है*

लखनवाड़ा थाना प्रभारी चंद्रकिशोर सिरामे जिले के उन चुनिंदा अधिकारियों में गिने जाते हैं, जिनकी कार्यकुशलता, विनम्र व्यवहार और निष्पक्ष छवि से पूरा पुलिस विभाग परिचित है। 2 करोड़ 96 लाख रुपए की लूटकांड से उनका किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं रहा, फिर भी “व्यवस्था सुधार” के नाम पर उन पर निलंबन की कार्रवाई ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विधि-सम्मत प्रावधानों के अनुसार, किसी अधिकारी पर तब तक अनुशासनात्मक दंड नहीं लगाया जा सकता जब तक उसके विरुद्ध प्रत्यक्ष साक्ष्य अथवा जांच में दोष सिद्ध न हो — ऐसे में सिरामे जैसे ईमानदार और ब्रिलिएंट माइंड अधिकारी का निलंबन न केवल न्यायिक मर्यादाओं के विपरीत प्रतीत होता है बल्कि पुलिस विभाग की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। वरिष्ठ अधिकारी भी यह स्वीकार करने से नहीं हिचक रहे कि ईमानदारी की कीमत चंद्रकिशोर सिरामे चुका रहे हैं।

2 करोड़ 96 लाख की लूट: क्या पुलिस की मिलीभगत की परतें अब खुलेंगी? कॉल डिटेल और व्हाट्सएप जांच से सामने आ सकता है सच!*

 

सिवनी जिले में 2 करोड़ 96 लाख रुपए की लूट का मामला अब गहराता जा रहा है। जिस तरह से आरोप खुद पुलिसकर्मियों पर लगे हैं, उससे पूरे पुलिस महकमे की साख पर गहरा सवाल उठ खड़ा हुआ है। जनता और मीडिया की मांग है कि सभी संदिग्ध पुलिसकर्मियों — जिनमें सीएसपी पूजा पांडे और अन्य निलंबित अधिकारी शामिल हैं — के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) और डीआर (डिटेल रिकॉर्ड) तुरंत निकाले जाएं। इसके साथ ही एक स्पेशल साइबर एक्सपर्ट टीम द्वारा उनके व्हाट्सएप कॉल्स, चैट्स और इंटरनेट गतिविधियों की फॉरेंसिक जांच कराई जानी चाहिए। क्योंकि इतनी बड़ी रकम के लेन-देन में सिर्फ निचले स्तर के अधिकारी शामिल हों, यह बात किसी के गले नहीं उतरती। सूत्रों के मुताबिक, जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस पूरे घटनाक्रम की भनक पहले से थी — भले ही वे उस वक्त जिले से बाहर रहे हों। सवाल साफ है — क्या पांच पत्रकारों को सब कुछ पता था और जिले के आला अधिकारियों को नहीं? अब जनता यही पूछ रही है कि “सच छिपाने की कोशिश किसकी है — लुटेरों की या वर्दी में बैठे रक्षकों की?”

आईजी जबलपुर प्रमोद वर्मा का बड़ा फैसला – पारदर्शिता की दिशा में कदम

आईजी जबलपुर प्रमोद वर्मा ने पुलिस अधीक्षक सुनील कुमार मेहता के आदेश को सिरे से खारिज करते हुए लखनवाड़ा थाना प्रभारी चंद्रकिशोर सिरामे का निलंबन आदेश निरस्त कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय न्यायसंगत प्रक्रिया और निष्पक्षता को ध्यान में रखकर लिया गया है। वहीं दूसरी ओर, पुलिस अधीक्षक सिवनी सुनील कुमार मेहता पर आरोप लग रहे हैं कि वे स्थानांतरण के माध्यम से जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कुछ थाना प्रभारी अपने प्रभावशाली संबंधों का उपयोग कर छोटे पत्रकारों को ₹500 से ₹1000 तक देकर खबरें दबाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि आईजी का यह फैसला ईमानदार पुलिस अधिकारियों के मनोबल को बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है।

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