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क्या नियमों की अनदेखी कर शोषण का गढ़ बन चुकी है एस. एम. परिमल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी?

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क्या नियमों की अनदेखी कर शोषण का गढ़ बन चुकी है एस. एम. परिमल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी?

 

क्या जिला प्रशासन की मौन सहमति से मनमानी पर उतर आए हैं कंपनी के जिम्मेदार?

 

ज्ञानेंद्र पांडेय

शहडोल

जिला शहडोल के पटासी गांव में संचालित एस. एम. परिमल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी इन दिनों श्रमिकों के शोषण और श्रम कानूनों की अनदेखी को लेकर सुर्खियों में है। केंद्र और राज्य सरकार जहां एक ओर मज़दूरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए तमाम योजनाएं और कानून लागू कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर यह कंपनी सरकारी नियमों और श्रम विभाग के दिशा-निर्देशों को ठेंगा दिखा रही है।

 

वेतन, ईपीएफ और बोनस सब ‘कागज़ी खानापूर्ति’!

 

कंपनी में कार्यरत श्रमिकों का आरोप है कि उन्हें समय पर वेतन नहीं दिया जाता, ईपीएफ की कटौती होती है लेकिन उसका लाभ नहीं मिलता, और बोनस का तो नाम मात्र भी ज़िक्र नहीं किया जाता। नियमों के अनुसार, प्रत्येक माह की 7 से 10 तारीख के बीच वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाना चाहिए, लेकिन यहां महीने दर महीने भुगतान में देरी आम बात हो गई है।

 

नाम न छापने की शर्त पर एक श्रमिक ने बताया, “जब भी हम वेतन की मांग करते हैं या मजदूरी दर को लेकर नियमों की बात करते हैं, तो हमें काम से निकालने की धमकी दी जाती है। यहां तक कि यह भी कहा जाता है कि अगर काम छोड़कर जाओगे तो बकाया भुगतान नहीं मिलेगा।”

 

बिना सुरक्षा उपकरणों के कर रहे जोखिमभरा काम

 

कंपनी में चल रहे पावर प्लांट और इथेनॉल उत्पादन जैसे खतरनाक कार्यों में लगे मजदूरों को सुरक्षा उपकरण तक मुहैया नहीं कराए जाते। लगभग 150 से 200 आउटसोर्स कर्मचारियों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है। श्रमिकों का कहना है कि यदि भविष्य में कोई हादसा होता है, तो जिम्मेदार कौन होगा?

 

प्रशासन की चुप्पी पर भी सवाल

 

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब ये सारी जानकारी मौखिक रूप से श्रमिकों द्वारा कई बार कंपनी प्रबंधन और जिला अधिकारियों तक पहुंचाई जा चुकी है, तो अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या जिला प्रशासन की चुप्पी इस शोषण को मौन स्वीकृति दे रही है?

 

सवालों के घेरे में कंपनी की नैतिकता और प्रशासन की जवाबदेही

 

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या एस. एम. परिमल प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियों के सामने श्रम कानून बेबस हैं? क्या जिला प्रशासन और श्रम विभाग की भूमिका केवल फाइलों तक सीमित रह गई है? और सबसे बड़ा सवाल—आख़िर कब मिलेगा इन मज़दूरों को न्याय?

 

यह मामला न सिर्फ मजदूरों के अधिकारों का हनन है, बल्कि श्रम कानूनों और मानवाधिकारों की खुली अवहेलना भी है। ज़रूरत है कि प्रशासन तत्काल हस्तक्षेप कर कंपनी के खिलाफ सख़्त कार्रवाई करे, जिससे मज़दूरों को उनका हक़ और सम्मान दोनों मिल सके।

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