News By- हिमांशु उपाध्याय / नितिन केसरवानी
सादी वर्दी, चुपचाप निगरानी और डिजिटल सुरागों ने रचा सफलता का तानाबाना
कौशांबी: जब करारी थाना क्षेत्र में तीन किशोरियां अचानक लापता हुईं, तब न शोर मचा, न सायरन बजे बस एक शांत अभियान शुरू हुआ, जिसका अंत एक सुखद मिलन में हुआ। यह कहानी सिर्फ बरामदगी की नहीं, बल्कि कौशांबी पुलिस की रणनीतिक सोच, मानवीय संवेदना और तकनीकी दक्षता की अनसुनी मिसाल है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को करारी क्षेत्र के एक परिवार ने अपनी दो बेटियों और एक परिचित की बेटी के लापता होने की सूचना दी। लड़कियों की उम्र 15 से 18 वर्ष के बीच थी। मामला बेहद संवेदनशील था, लेकिन पुलिस ने इसे एक सामान्य खोज के रूप में नहीं, बल्कि “जिंदगी बचाने के अभियान” के रूप में लिया।
पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार ने किसीऔपचारिक प्रेस नोट या दिखावे के बजाय तुरंत चुपचाप एक विशेष टीम गठित की, जिसमें सादी वर्दी में प्रशिक्षित कर्मियों को लगाया गया। मोबाइल लोकेशन, सीसीटीवी फुटेज और स्थानीय सूत्रों के माध्यम से एक डिजिटल मानचित्र तैयार हुआ, जिसकी डोर वाराणसी तक जाती दिखी।
बिना किसी होहल्ले और मीडिया की भनक के, टीम वाराणसी रवाना हुई। वहां पुलिस ने आरपीएफ, जीआरपी और एसओजी के साथ समन्वय बनाकर स्टेशन परिसर से लेकर लॉज और सार्वजनिक स्थलों तक तलाश तेज कर दी। इसी बीच एक मुखबिर की सूचना और एक धुंधली सी सीसीटीवी क्लिप ने पूरे केस को मोड़ दिया।
जिस संयम और समझदारी से पुलिस ने इन बालिकाओं को खोजा, वह बताता है कि आज की पुलिस सिर्फ डंडे की भाषा नहीं, डेटा और संवेदना की भी समझ रखती है। लड़कियों को सुरक्षित पाकर न सिर्फ उनके परिजनों की आंखों में आंसू थे, बल्कि कई पुलिसकर्मी भी भावुक नजर आए।
इस पूरी कार्यवाही के दौरान न कोई फोटो वायरल हुआ, न कोई बयानबाज़ी,बस एक खामोश लड़ाई, जो 24 घंटे में तीन मासूम जिंदगियों को अंधेरे से वापस उजाले में ले आई। कहानी में कोई नायक नहीं, पूरी टीम ही हीरो थी। कौशांबी पुलिस की यह कार्यशैली आने वाले समय में देशभर की पुलिसिंग के लिए एक आदर्श बन सकती है।