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सजा मां शीतला का दरबार ,मध्य रात्रि से पूजन एवं दर्शन के लिए भक्तो की लगी कतार।

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सजा मां शीतला का दरबार ,मध्य रात्रि से पूजन एवं दर्शन के लिए भक्तो की लगी कतार।

नानपुर_हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी का बड़ी विशेष मानी गई है। नगर से कुछ दूरी पे स्थित सजा मां शीतला का दरबार ,मध्य रात्रि से पूजन एवं दर्शन के लिए भक्तो की लगी कतार।

शीतला सप्तमी को बसौड़ा भी कहा जाता है.शीतला सप्तमी का व्रत हर साल चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर पड़ता है. इस दिन माता शीतला का व्रत और विशेष पूजा-उपासना की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजन करने वालों के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने वाले रोग मुक्त हो जाते हैं.पंडित कमलेश नागर ने में बताया कि शीतला सप्तमी के दिन व्रत और पूजन करने से जीवन खुशहाल रहता है. संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन माता की विधि-विधान से पूजा करके उन्हें बासी भोग लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यही नहीं इस व्रत का शीतला माता को दही, राबड़ी की प्रसादी का भोग के साथ बासी व्यंजन प्रसादी रूप में भी भोग लगाया जाता है ,उसी प्रसाद के रूप में बासी भोग वितरित किया जाता है।

पंडित नागर ने बासी भोग प्रसादी का महत्व समझाया दरअसल, शीतला माता का भोग और परिवार के सदस्यों का भोजन व्रत के एक दिन पहले तैयार कर लिया जाता है. इसके बाद अगले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर में उठकर माता शीतला की पूजा की जाती है. माता को बासी यानी ठंडे भोजन का भोग लगया जाता है. फिर बासी भोग को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. परिवार के सदस्य मां के भोग के साथ ही इस दिन ठंडा भोजन करते हैं. बासी भोग सादगी को महत्व देता है।शीतला माता मंदिर समिति के वरिष्ठ श्री मनोहर लाल वाणी ने कहा की माता का पूजन के लिए लंबी कतारें प्रातः काल से लग जाती है। दो दिन पूर्व से ही रंग रोगन कर मंदिर को फूलो से सजाया जाता है, सप्तमी के दिन ठंडा पानी के साथ टेंट की व्यवस्था की जाती है। मंदीर के सामने शीतल पेय पदार्थ की दुकाने लगाई जाती । परम्परानुसार इसी दिन शोक संतृप्त परिवारों मे रिश्तेदार,मित्रों द्वारा ठंडा भोजन देकर शोक निवारण किया जाता है।

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