विजय दिवस के अवसर पर सम्मानित किये गए देश के वीर सैनिक जिन्होंने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध मे अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन देश पाकिस्तान के दो टुकड़े कर के घुठनों पर ला दिया था
News By-नितिन केसरवानी
प्रयागराज का 17 साल का नौजवान जिसने देश के लिए अपनी जान निछावर करने की कसम खायी और सन 1966 मे फ़ौज मे भर्ती हो गया।भारत मे वो जंग का समय ऐसा था जब संपन्न परिवार के लोग भी अपने बच्चों को देश के लिए फ़ौज मे भर्ती होने के लिए हस्ते हस्ते भेजा करते थे। सबके दिलों मे देश के लिए एक अलग हीं जज़्बा था। यही कारण है की सन 1971 मे भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध मे भारत की सेना के नौजवानों का उत्साह इतना ऊर्जावान था की सेना के नौजवानो ने अपने पराक्रम और अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान को गुठनों पर ला दिया और जिसमे 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने पूरे अस्लाहों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
जी हाँ हम बात कर रहे हैँ प्रयागराज के झूंसी के रहने वाले भारतीय सेना के जवान नायब सूबेदार मुख़्तार आलम सिद्दीकी की। पिता डॉक्टर मोहम्मद आलम पेशे से डॉक्टर थे इसलिए उन्हें भी डॉक्टर बनाना चाहते थे लेकिन मन ही मन फ़ौज मे भर्ती होकर देश के लिए जंग लड़ने की ठान ली थी। मात्र 17 साल की उमर के इस नौजवान को देश की सेवा करने की ऐसी धुन सवार हुयी की अपने घर पर पिता को बिना बताये पहुँच गए सोल्जर बोर्ड मे सेना मे भर्ती होने।सिग्नल कोर मे सिग्नल मैन के पद पर भर्ती हुए ट्रेनिंग के लिए गोवा भेजे गए। अभी मूछ की जगह रेख ही आई थी लेकिन दिल मे जज़्बा इतना की बांग्लादेश के युद्ध मे जाने के लिए हज़ारो सैनिको के बीच हुयी परीक्षा पास कर मुक्ति वाहिनी मे वॉलेंटियर चुने गए और फिर कलकत्ता हवाई अड्डे से सीधा बांग्लादेश के जैसूर पहुंचें। जहाँ हुए युद्ध मे अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए युद्ध लड़ा और भारतीय सेना ने फिल्ड मार्शल मानिक शाह के निर्देशन मे जनरल जगजीत सिंह अरोरा की अगुवाई मे पाकिस्तानी सेना के 93 हज़ार सैनिको को गुठने के बल आत्म समर्पण करा के झुका दिया। आज जिला पंचायत भवन मे आयोजित विजय दिवस समारोह के कार्यक्रम मे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ती श्री जे.जे मुनीर जी ने विजय स्मृति चिन्ह देकर भूतपूर्व सैनिक श्री मुख़्तार आलम सिद्दीकी को सम्मानित किया।