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सरकार की आलोचना पर पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं

देखिए सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

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सरकार की आलोचना पर पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं

 

देखिए सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

 

नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की बुनियाद को सुदृढ़ करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि सिर्फ सरकार की आलोचना के आधार पर किसी पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।

 

यह फैसला वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के दौरान आया, जब उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

 

संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मान्यता

 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा

पत्रकार के विचार और रिपोर्ट संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है और सरकार की आलोचना को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

 

कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि यदि कोई रिपोर्ट तथ्यात्मक है और जनहित में प्रकाशित की गई है, तो उसे दंडात्मक कार्रवाई का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।

 

सरकार से मांगा स्पष्ट जवाब

 

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस से पूछा है कि पत्रकार के खिलाफ किस आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में असहमति और आलोचना को स्थान मिलना चाहिए, और सत्ता के सवालों से बचने के लिए पत्रकारों पर मुकदमे दर्ज करना संविधान का उल्लंघन होगा।

 

पत्रकार संगठनों की सराहना

 

इस निर्णय के बाद देशभर के पत्रकार संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का आभार प्रकट किया है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस फैसले को प्रेस की आज़ादी के लिए ऐतिहासिक और दिशानिर्देशक कदम बताया है।

 

यह फैसला सत्ता के दबाव में की जाने वाली दमनात्मक कार्रवाइयों के खिलाफ सुरक्षा कवच की तरह काम करेगा—एडिटर्स गिल्ड

 

लोकतंत्र की रक्षा में मील का पत्थर

 

इस फैसले से यह संदेश साफ है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, जिसे किसी भी स्थिति में कुचला नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि आने वाली सुनवाई में वह इस विषय पर स्पष्ट दिशानिर्देश जारी कर सकता है, ताकि भविष्य में पत्रकारों को अनावश्यक उत्पीड़न से सुरक्षा मिल सके।

 

संपादकीय टिप्पणी:

 

यह निर्णय न सिर्फ पत्रकारों के लिए, बल्कि हर उस नागरिक के लिए राहत का संकेत है जो सत्ता से सवाल पूछने को अपना लोकतांत्रिक अधिकार मानता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है और संविधान की मूल भावना की पुष्टि करता है।

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