बकहो नगर परिषद में शासकीय राशि का खुला दोहन:करोड़ों में बना पार्क बना गाजर घास का अड्डा
देखिए जनप्रतिनिधि बने ठेकेदार
बकहो नगर परिषद में शासकीय राशि का खुला दोहन:करोड़ों में बना पार्क बना गाजर घास का अड्डा
देखिए जनप्रतिनिधि बने ठेकेदार

ज्ञानेंद्र पांडेय/शहडोल::शहडोल जिले की नगर परिषद बकहो इन दिनों सरकारी धन के बेजा इस्तेमाल और भ्रष्ट तंत्र के चलते सुर्खियों में है। करोड़ों रुपए की लागत से निर्मित पार्क जहां नागरिकों को सुकून देने वाला सार्वजनिक स्थल होना था, वहां आज गाजर घास और जंगली झाड़ियाँ लहलहा रही हैं। स्थानीय जनता के अनुसार, यह एक “पार्क” नहीं, बल्कि एक “प्रयोगशाला” बन चुका है — जहां शासकीय राशि के दोहन और राजनीतिक स्वार्थों के प्रयोग खुलेआम हो रहे हैं।
पार्क नहीं, गाजर घास का जंगल
नगर परिषद द्वारा लाखों-करोड़ों रुपए खर्च कर तैयार किया गया यह पार्क अब टहलने लायक नहीं रहा। चारों ओर गाजर घास की भरमार है, बच्चों के खेलने की कोई सुविधा नहीं है और साफ-सफाई की स्थिति दयनीय बनी हुई है। भाजपा द्वारा आयोजित सेवा पखवाड़ा के दौरान भी इस उपेक्षित स्थल को लेकर कोई कार्य नहीं हुआ। नेताओं ने सिर्फ फोटो खिंचवाई, पोस्ट की, और चले गए — जमीनी हकीकत वहीं की वहीं रही।
“खुद ही ठेकेदार, खुद ही पार्षद” टेंडर में खुला खेल
सूत्र बताते हैं कि नगर परिषद में पदस्थ एक प्रभावशाली प्रतिनिधि द्वारा अपनी ही फर्म के नाम से टेंडर भरे गए और उन्हीं से निर्माण कार्य भी कराए गए। यह स्पष्ट रूप से नगर पालिका अधिनियम का उल्लंघन है, जो किसी भी जनप्रतिनिधि को पद पर रहते हुए शासकीय कार्यों से वित्तीय लाभ उठाने से रोकता है। लेकिन बकहो में यह कानून बेअसर नजर आता है।
यहां एक “गठजोड़ कंपनी” का भी नाम चर्चा में है, जो टेंडर से लेकर बिल पास करवाने तक, हर प्रक्रिया में दखल रखती है। बताया जा रहा है कि उक्त व्यक्ति कभी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन अब भाजपा का दामन थामकर दूसरे दर्जे की भूमिका निभा रहा है। संगठन की रीति-नीति से अनभिज्ञ यह व्यक्ति आज परिषद में अपनी मनमर्जी से फैसले कर रहा है।
जनता से जुड़ी ज़मीन पर निर्माण, सुरक्षा के साथ खिलवाड़
गंभीर चिंता का विषय यह है कि यह पार्क उस जगह के बगल में बना है जहां पहले एक शासकीय स्कूल संचालित होता था। उक्त विद्यालय की इमारत भूमि धंसने के कारण खतरनाक घोषित कर बंद कर दी गई थी। ऐसे में उसके बगल में पार्क का निर्माण न केवल तकनीकी गलती है, बल्कि जन सुरक्षा के साथ सीधा खिलवाड़ भी है।
सेवा का मुखौटा, स्वार्थ की राजनीति
भाजपा जैसी अनुशासित और नीति-आधारित पार्टी में जब ऐसे लोग प्रवेश कर संगठन की छवि धूमिल करते हैं, तो यह सिर्फ एक पार्टी का नहीं बल्कि लोकतंत्र की नींव का अपमान है। सेवा पखवाड़ा सिर्फ सोशल मीडिया का प्रचार माध्यम बन कर रह गया, जबकि ज़मीनी हालात बिल्कुल विपरीत हैं। सेवा की जगह स्वार्थ और जिम्मेदारी की जगह दिखावा — यही इस पूरे प्रकरण की तस्वीर है।
अब जरूरी है जवाबदेही और जांच
यह सवाल अब सिर्फ बकहो के एक पार्क का नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की जवाबदेही का है। जब जनप्रतिनिधि ही खुद की फर्म से निर्माण कार्य कराएं, और भ्रष्टाचार को राजनीतिक चुप्पी से संरक्षण मिले, तो लोकतंत्र का भरोसा डगमगाने लगता है।
क्या सेवा पखवाड़ा सिर्फ फोटो और पोस्ट तक सीमित रहेगा?
“जब जिम्मेदार ही बन जाएं लाभार्थी, और जनसेवा की जगह निजी स्वार्थ हावी हो जाए, तब लोकतंत्र की नींव हिलने लगती है। अब समय आ गया है कि जनता, प्रशासन और मीडिया — मिलकर इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ आवाज़ उठाएं।”
