Breaking News in Primes

रामपुर-बटूरा में स्टीम कोयले की कालाबाजारी: किसकी सहमति और संरक्षण में चल रहा काले सोने का खेल?

लाखों का चूना तो लग ही रहा है, वहीं यह भी सवाल खड़े होते हैं कि यह सब किसकी सहमति और संरक्षण से हो रहा है?

0 14

रामपुर-बटूरा में स्टीम कोयले की कालाबाजारी: किसकी सहमति और संरक्षण में चल रहा काले सोने का खेल?

 

 

ज्ञानेंद्र पांडेय::शहडोल।एसईसीएल की सोहागपुर एरिया अंतर्गत रामपुर-बटूरा सहित कई अन्य खदानों में लंबे समय से स्टीम कोयले की खुली कालाबाजारी बेधड़क जारी है। खदान से निकलने वाला ओआरएम (On Running Mines) कोयला, जो बिना छंटाई का होना चाहिए, वह ‘फिट-टू-सेल’ बड़े साइज में छांटकर एक तयशुदा रकम लेकर डीओधारियों को बेचा जा रहा है। इससे एसईसीएल को लाखों का चूना तो लग ही रहा है, वहीं यह भी सवाल खड़े होते हैं कि यह सब किसकी सहमति और संरक्षण से हो रहा है?

 

प्रशासन की चुप्पी में है बड़ी साजिश?

 

सवाल यह भी है कि क्या एसईसीएल के महाप्रबंधक को इस पूरे खेल की जानकारी नहीं है? या फिर सबकुछ जानकर भी आँखें मूँद ली गई हैं? प्रतिदिन की अवैध 100-50 रुपए की वसूली हो या स्टीम कोयले की सुनियोजित कालाबाजारी – सबकुछ किसी बड़े नेटवर्क की ओर इशारा करता है। डीओधारी ट्रांसपोर्टरों से सांठगांठ कर कुछ जिम्मेदार कर्मचारी न केवल मोटी कमाई कर रहे हैं बल्कि विभाग की साख को तार-तार कर रहे हैं।

 

ओआरएम के नाम पर स्टीम कोयला – सुनियोजित घोटाला

 

जब खदान से ओआरएम कोयला निकाला जाता है, तो उसे बिना किसी छंटाई के देना होता है। लेकिन कॉलरी प्रबंधन ने मानों अपनी अलग व्यवस्था बना रखी है। यहाँ कोयले की छंटाई कर स्पेशल स्टीम कोयला निकाला जाता है और ऊंचे दाम पर कारोबारियों को सौंपा जाता है। यह न सिर्फ नियमानुसार गलत है बल्कि कंपनी के आर्थिक हितों के विरुद्ध एक बड़ा षड्यंत्र है।

 

उपक्षेत्रीय प्रबंधक की अनुपस्थिति में कौन चला रहा है कोयले का साम्राज्य?

 

कॉलरी में उपक्षेत्रीय प्रबंधक की गैर-मौजूदगी में यह सारा खेल बिना किसी संरक्षण के नहीं चल सकता। जिन कर्मचारियों को वेतन के रूप में मोटी रकम मिल रही है, वे अब कोयला व्यापारियों से संबंध बनाकर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए निजी कमाई में लगे हुए हैं। यह स्थिति न सिर्फ कंपनी को नुकसान पहुँचा रही है बल्कि ईमानदार मजदूरों के मेहनत का अपमान भी कर रही है।

 

क्या विजिलेंस और मुख्यालय को नहीं है खबर?

 

यदि विजिलेंस चाहे तो रामपुर-बटूरा में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच से पूरी कालाबाजारी की परतें खुल सकती हैं। प्रत्येक ट्रक की लोडिंग-अनलोडिंग, वसूली का हिसाब और मजदूरों की अवैध एंट्री – सब रिकॉर्ड में आ सकता है। लेकिन सवाल यही है – क्या जानबूझकर यह सब अनदेखा किया जा रहा है? क्या संबंधित अधिकारियों की सहमति से चल रहा है यह काला कारोबार?

 

मुख्य द्वार पर ‘अनधिकृत प्रवेश वर्जित’, फिर मजदूर कहां से आते हैं?

 

खदानों के बाहर भले ही ‘अनधिकृत प्रवेश वर्जित’ का बोर्ड टंगा हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। मजदूरों की भर्ती, छंटाई का काम और ट्रांसपोर्टरों से नजराना – ये सब एक संगठित रैकेट की ओर इशारा करते हैं, जिसकी जड़ें आमडंडा कॉलरी से जुड़ी मानी जा रही हैं। यहां तक कि नामचीन नेताओं के संरक्षण की भी चर्चा जोरों पर है।

 

अब वक्त है जवाबदेही का: महाप्रबंधक महोदय, क्या कार्रवाई करेंगे आप?

 

जब कोयले के नाम पर इतनी बड़ी अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और वित्तीय नुकसान सामने है, तो जरूरी है कि एसईसीएल के महाप्रबंधक, विजिलेंस और मुख्यालय इस पर तत्काल संज्ञान लें। क्या इन सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी? क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर उन्हें “पोस्टिंग शील्ड” देकर दूसरी जगह फिर से वही खेल खेलने भेज दिया जाएगा?

 

अब यह देखना शेष है कि कोयले की इस कालिख से कंपनी को बचाने के लिए कौन आगे आता है, या फिर यह कालिख सबकी नीयत पर चढ़ चुकी है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

Don`t copy text!