*जनपद में बरसों से जमे कर्मचारी चला रहे अपना साम्राज्य*
*कमीशन खोरी बना निर्माण कार्य का पैमाना ठेकेदारी प्रथा चरम पर*
*प्राइम संदेश सीधी*
*ब्यूरो राजेश सिंह गहरवार*
जिले अंतर्गत मझौली जनपद पंचायत में बरसों से एक ही जगह में जमे कर्मचारियों एक छत्र अपना राज्य चला रहे हैं। और शासकीय योजनाओं में ग्रहण लगा रहे हैं। इन कर्मचारियों पर किसी की निगाह नहीं जाती है। और ना ही शासन के नियम अनुसार इनका स्थानांतरण किया जाता है। इसलिए इन कर्मचारियों का पूरी जनपद में एक छत्र राज्य चल रहा है और निर्माण कार्यों का पैमाना प्राक्कलन के बजाय कमीशन बन गया है।अगर शासन स्तर पर देखा जाए तो पूरे मध्य प्रदेश में थोक में अधिकारियों और कर्मचारियों अधिकारियों के ट्रांसफर किए जा रहे हैं। परंतु इस तरह अंगद की तरह पांव जमाए कर्मचारियों पर यहां ट्रांसफर नीति ऐसा लगता है कि लागू ही नहीं हो रही है। या फिर इनको छूने की शासन प्रशासन की हिम्मत नहीं हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सत्ता दल के नेताओं एवं अधिकारियों द्वारा विशेष संरक्षण दिया गया है, और भ्रष्टाचार करने की खुली छूट दी गई हो। आपको बताते चलें जनपद पंचायत मझौली में लेखपाल पिछले 30- 32 सालों से जमे हुए हैं। लेकिन विशेष नेताओं के संरक्षण प्राप्त होने के कारण बड़े अधिकारियों की उन पर स्थानांतरण करने की हिम्मत नहीं हो रही है। वहीं डाटा एंट्री ऑपरेटर को थोड़े समय के लिए कुसमी के लिए स्थानांतरण हुआ लेकिन अपनी पहुंच पकड़ के करण पुन: मझौली जनपद में अपना डेरा जमाने के साथ ही ए पी ओ अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी जैसे बड़े पदों से नबाजा गया हैं जबकि संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों को इसका प्रभार दिया ही नहीं जाना चाहिए। इतना ही नहीं रोजगार गारंटी में फर्जीवाड़ा करने वाले रोजगार सहायकों को अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी का खुला संरक्षण प्राप्त है जिस कारण शिकायत के बाद भी उनके द्वारा लीपा पोती कर और वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह कर बचा लिया जाता है और रोजगार सहायकों का फर्जीवाड़ा इन दिनों चरम पर चल रहा है।जनपद पंचायत के बाबू की बात करें तो पिछले बीसो साल से एक कार्यालय में अंगद के पाव की तरह जमें हुए हैं, और अपना मनमाना राज चल रहे हैं। इसी तरह मनरेगा प्रभारी भी बरसों से जमे हुए हैं। मनरेगा प्रभारी की कई बार शिकायत भी की गई लेकिन उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई। यहां तक की मनरेगा में मृतक मजदूरो का भी मस्टररोल बनाकर इनके द्वारा भुगतान कर दिया गया हैं। मस्टर रोल में काम करने वाले मजदूरों का निरीक्षण भी कभी नहीं किया जाता है। इनके द्वारा ऑफिस में बैठकर ही सारी कागजी कार्यवाही पूर्ण कर ली जाती हैं। और लेबरों का कमीशन ले देकर भुगतान कर दिया जाता है।
*सब इंजीनियर बने एसडीओ, बिना ए एस,व टी एस चालू कर दिए जाते हैं ग्राम पंचायत के कार्य*
सरकार द्वारा कई प्रकार के निर्माण कार्य ग्राम पंचायतों के माध्यम से स्वीकृत किए जाते हैं। जिसे नियमानुसार ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर कार्य की रूपरेखा, एवं अनुमानित लागत का कार्य अनुसार लेखा जोखा, एवं प्रशासकीय व्यय आदि का स्टीमेट तैयार करने के उपरांत कार्य करने की स्वीकृत दी जाती है। लेकिन जब से सब इंजीनियर को एसडीओ पद का प्रभार मिला है, तब से बगैर स्वीकृत के ही कार्य चालू कर दिए जाते हैं। और बाद में उन कार्यों की स्वीकृत प्रदान कर राशि का भुगतान फर्जी तरीके से कर दिया जाता है। ज्यादातर देखा जाता है कि इंजीनियर कमरे में बैठे ही कार्यों का मूल्यांकन कमीशन लेकर कर देते हैं। बहुत से कार्य ऐसे होते हैं कि जिन्हें चालू होने का सब इंजीनियरों को ही पता नहीं होता है। लेकिन फिर भी उनका मूल्यांकन कर उनका भुगतान कर दिया जाता है। ज्यादातर निर्माण कार्य एसडीओ एवं उपयंत्रियों के गुर्गो द्वारा कमीशन पर कराए जाते हैं। इसलिए कमीशन के चलते उपयंत्रियों को कार्यस्थल देखने की आवश्यकता नहीं रहती है। यही वजह है कि आरईएस ऑफिस में हमेशा कथित ठेकेदारों का जमावड़ा लगा रहता है।अगर इन सब की जांच की जाए तो करोड़ों का भ्रष्टाचार उजागर होगा। लेकिन वरिष्टों के संरक्षण के कारण एवं राजनीतिक पकड़ के कारण इस प्रकार के भ्रष्ट कर्मचारी फलीभूत हो रहे हैं।