खालवा कृषि उपज उपमंडी कागज़ों पर संचालित, किसानों का हो रहा शोषण
खंडवा – खालवा कृषि उपज उपमंडी वर्षों से केवल रिकॉर्ड पर ही संचालित हो रही है। मंडी विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों और व्यापारियों की मिलीभगत से मंडी की गतिविधियाँ कागज़ों तक सीमित रह गई हैं। यहां न तो नीलामी प्रक्रिया होती है, न तौल कांटा और न ही स्थाई कर्मचारी मौजूद हैं और मंडी परिसर में किसानों की उपज की जगह व्यापारियों द्वारा खरिदा माल सुखाया जाता है।
मंडी अधिकारी और स्थानीय व्यापारियों की मिली भगत से किसानों की उपज उनके घरों या निजी गोदामों पर ही खरीदी जाती है, जिससे शासन को राजस्व का नुक़सान भी होता है। इस दौरान व्यापारी अपनी मनमर्जी के भाव तय करते हैं और भुगतान भी एक-दो माह बाद किया जाता है। इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।
खालवा क्षेत्र से करीब 150 ग्राम पंचायतें इस उपमंडी से जुड़ी हैं। अधिकांश किसान गरीब, आदिवासी और मध्यम वर्ग के हैं, जिनके पास परिवहन सुविधा नहीं होने के कारण वे अपनी उपज हरसूद या खंडवा की मुख्य मंडियों तक नहीं पहुंचा पाते। मजबूरीवश उन्हें औने-पौने दामों पर अपनी उपज स्थानीय व्यापारियों को बेचनी पड़ती है।
इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें सोयाबीन और मक्का हैं। इस वर्ष मौसम की अनियमितता से सोयाबीन की पैदावार घट गई, वहीं मक्का की खरीद आधे दामों पर की जा रही है। किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा। दीपावली के समय, बुवाई की तैयारी, खाद-बीज की व्यवस्था और पुराने कर्जों के दबाव में किसान फसल रोक नहीं पाते और मजबूरी में कम दामों पर बेच देते हैं।
मंडी परिसर की स्थिति भी दयनीय बताई जा रही है। यहां न तौल कांटा है, न तुलावटी, न हम्माल, न पेयजल की व्यवस्था। विभागीय अधिकारी हर वर्ष सिर्फ खानापूर्ति कर मंडी को चालू बताकर मामला बंद कर देते हैं।
आम आदमी पार्टी के हरसूद विधानसभा प्रभारी राजेंद्र उपाध्याय ने बताया कि “खालवा उपमंडी में वर्षों से किसानों का शोषण हो रहा है। मंडी विभाग और व्यापारियों की मिलीभगत से लाखों रुपये का मंडी टैक्स तो लिया जाता है, लेकिन किसानों को कोई सुविधा नहीं मिलती। अगर शीघ्र ही मंडी को विधिवत रूप से संचालित नहीं किया गया, तो किसानों के हित में उग्र आंदोलन किया जाएगा।”