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राजधानी में असुरक्षित महिला पत्रकार: सत्ता और प्रशासन की चुप्पी शर्मनाक

पुलिस में आवेदन के बाद भी खुलेआम घूम रहे बदमाश, चौथा स्तंभ शर्मशार 

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राजधानी में असुरक्षित महिला पत्रकार: सत्ता और प्रशासन की चुप्पी शर्मनाक

 

पुलिस में आवेदन के बाद भी खुलेआम घूम रहे बदमाश, चौथा स्तंभ शर्मशार

 

मनीष कुमार राठौर

8109571743

 

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी में अगर एक महिला पत्रकार सुरक्षित नहीं है, तो यह पूरे शासन-प्रशासन की नाकामी का सबूत है। कलम की स्याही से पीड़ित की आवाज को उकेरने में पत्रकार को अब धमकियां और मानसिक प्रताड़ना उठानी पड़ रही है। तो यह मामला सिर्फ एक महिला पत्रकार का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की पोल खोलता है जो अपराधियों को संरक्षण देती है और ईमानदार आवाज़ों को कुचलने का प्रयास करती है। कहा गए प्रदेश के मीडिया संगठन और हवा हवाई होता प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री का आदेश जिसमें चौथे स्तंभ को कुचलने वाले आरोपी तत्वों पर तत्काल सख्त कार्रवाई करने जैसे झूठे वादे अब जुमला साबित हो रहा वही प्रदेश के पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की करने के लिए बनाने वाले सुरक्षा कानून जैसे लॉलीपॉप सिर्फ चौथे स्तंभ को कुचलने पर मौन धारण करने के लिए बनाई गए है । मगर शासन प्रशासन इसी तरह मौन धारण किए हुए है, तो आप समझ सकते है कि मध्यप्रदेश में अपराधियों का राज है और भ्रष्टाचारियों को सत्ता का खुला संरक्षण मिला रहा है ।

 

क्या है मामला ?

 

भोपाल की निर्भीक पत्रकार ममता गनवानी ने जब एक सफाई कर्मचारी के सम्मान में आवाज उठाई, तो उन्हें अपराधियों की धमकियों और झूठे विवादों का सामना करना पड़ा।

25 सितंबर 2025 को विजयनगर लालघाटी स्थित साईं बाबा कॉम्प्लेक्स में सफाईकर्मी ममता वाल्मीकि के साथ बदसलूकी करने वाले प्रकाश मंगलानी की हरकत को पत्रकार ममता गनवानी ने उजागर किया। सच सामने आते ही दबंगों की नींद उड़ गई और अब वही लोग उन्हें और उनके परिवार को परेशान कर रहे हैं।

8 अक्टूबर की रात, उमेश श्रीवास्तव और उसके साथी कपिल पारवानी ने झूठा विवाद खड़ा कर पत्रकार पर मनगढ़ंत आरोप लगाए। जबकि इन्हीं उमेश श्रीवास्तव पर 18 सितंबर 2023 को ममता गनवानी की कार का शीशा तोड़ने का केस दर्ज हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं और पुलिस महज दर्शक बनी हुई है।

 

पत्रकार ने रात 3 बजे ही कोहेफिजा थाने में आवेदन दिया, पर पुलिस ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। सवाल यह है कि आखिर राजधानी की पुलिस किसके इशारे पर खामोश है? क्या आम नागरिक तो छोड़िए, अब पत्रकारों को भी न्याय पाने के लिए सत्ताधारी रसूखदारों की मंजूरी चाहिए?

 

*कहा गए संगठन और उनके सरगना*

 

पूरे देश सहित मध्य प्रदेश में भी पत्रकार संगठन की भरमार है आए दिन एक नया संगठन खड़े होकर पत्रकारों के हितों की रक्षा और उनको न्याय दिलाने की झूठे वादे करते हुए अपनी रोटी सेकता है परंतु जब मध्य प्रदेश की राजधानी और अन्य जिलों में पत्रकार के साथ अन्याय होता है तो यह संगठन रूपी सरगना अपने आप को बचाते हुए सिर्फ ज्ञापन देने के काम को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं । क्या मध्य प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून बनने के बाद भी सुरक्षित रहेंगे पत्रकार ? छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में बने पत्रकार सुरक्षा कानून की क्या है दुर्दशा ? यदि मध्य प्रदेश में भी बन जाएगा पत्रकार सुरक्षा कानून तो क्या ही कर लेगा शासन प्रशासन इसके चौथे स्तंभ के लिए जो अब मदद नहीं करता है तो कानून बनने पर भी क्या होगा ऐसे कितने ही नियम कानून मध्य प्रदेश के कार्यालय में धूल खा रहे हैं यह भी बन जाएगा तो क्या ही हो जाएगा ?

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