ड्यूटी के समय निजी एजेंसी का संचालन! ताप विद्युत गृह में पदस्थ कर्मचारी की मनमानी चरम पर
ज्ञानेंद्र पांडेय 7974034465
अनूपपुर, ताप विद्युत गृह चचाई, जिसे पूरे राज्य में अपनी कार्यकुशलता और उत्पादन निरंतरता के लिए सराहा जाता है, वहां एक कर्मचारी की मनमानी और कर्तव्य विमुखता विभाग की साख पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है। मुख्य अभियंता कार्यालय में पदस्थ यह कर्मचारी ड्यूटी के समय न केवल गैर-शासकीय कार्यों में संलिप्त पाया गया है, बल्कि पत्नी के नाम पर संचालित एक निजी एजेंसी के प्रचार-प्रसार में भी लगा हुआ है।
सूत्रों के अनुसार, उक्त कर्मचारी अपनी पत्नी के नाम से किसी निजी कंपनी की एजेंसी चलाता है और खुद को “कर्तव्यनिष्ठ” दिखाने की आड़ में शासकीय संसाधनों का दुरुपयोग कर रहा है। बताया गया है कि वह अक्सर ड्यूटी के समय कर्मचारियों व ठेका श्रमिकों को उत्पादों की जानकारी देता दिखाई पड़ता है, जो स्पष्ट रूप से सेवा शर्तों का उल्लंघन है।
पत्नी का राजनीतिक रसूख और ड्यूटी पर असर
गंभीर बात यह है कि कर्मचारी की पत्नी एक राजनीतिक दल की सक्रिय पदाधिकारी हैं, और इसी प्रभाव का उपयोग कर यह कर्मचारी अपने स्थानांतरण में भी मनमर्जी करता आया है। अक्टूबर 2021 में पाली पावर प्लांट स्थानांतरण हेतु आवेदन करने के बावजूद, मात्र कुछ महीनों में ही “चरण वंदना” कर पुनः चचाई ताप विद्युत गृह में वापसी कर ली गई — वह भी बिना किसी स्पष्ट प्रशासनिक औचित्य के।
इस वापसी के बाद से ही कर्मचारी का रवैया और अधिक लापरवाह हो गया है — न समय पर ड्यूटी पर आना, न अनुशासन का पालन; और तो और, शासकीय वाहन का उपयोग निजी कार्यों के लिए करना उसकी आदत बन चुकी है।
ड्यूटी के समय निजी कार्य: किस कानून के अंतर्गत आता है अपराध?
शासकीय सेवक नियमावली के अनुसार, कोई भी कर्मचारी ड्यूटी के समय निजी व्यवसाय, प्रचार-प्रसार, या किसी भी लाभकारी एजेंसी से संबंध नहीं रख सकता।
मध्यप्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 की धारा 15 के अंतर्गत,
“कोई शासकीय सेवक बिना सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के किसी निजी व्यापार, व्यवसाय या अन्य लाभदायक कार्य में संलग्न नहीं हो सकता।”
IPC की धारा 168 के अनुसार,
“कोई भी लोक सेवक यदि अपनी पदस्थापना के दौरान व्यापार करता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आता है और सज़ा का प्रावधान है।”
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
यह अत्यंत विचारणीय विषय है कि जब ताप विद्युत गृह की छवि उत्कृष्टता की मिसाल बनी हुई है, तो ऐसे कर्मचारी कैसे वर्षों से मुखिया की नजरों से बचते चले आ रहे हैं? क्या यह महज प्रशासनिक लापरवाही है या फिर कुछ और?जनहित एवं संस्थान की साख की रक्षा के लिए ऐसे कर्मचारियों पर तत्काल अनुशासनात्मक कार्यवाही की आवश्यकता है। वरना यह संदेश जाएगा कि राजनीतिक पकड़ और पद का दुरुपयोग करने वाले कर्मचारियों के लिए नियम-कानून कोई मायने नहीं रखते।