अटल आश्रय योजना पर ‘रसूख’ का कब्ज़ा: नियम ताक पर, हरियाली में डूबा भ्रष्टाचार
ज्ञानेंद्र पांडेय 7974034465
अनूपपुर।
गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल द्वारा बरबसपुर में अटल आश्रय योजना के तहत बनाए गए आवास अब सवालों के घेरे में हैं। जिन लोगों के लिए यह योजना बनी, उन्हें तो लाभ दूर-दूर तक नहीं मिला, लेकिन जिनकी आय योजना की पात्रता से कहीं अधिक है, वे अब इन भवनों में आराम से निवास कर रहे हैं।
आवश्यक शर्तें थीं साफ़, फिर भी मिला लाभ
इस योजना के अंतर्गत स्पष्ट नियम तय किए गए थे कि इसका लाभ केवल उन्हीं परिवारों को मिलेगा जिनकी सालाना आय ₹6 लाख से कम हो। लेकिन जमीनी सच्चाई इससे उलट है। सूत्रों के अनुसार, कई ऐसे व्यक्ति इन आवासों में रह रहे हैं जिनकी सालाना आय ₹12 लाख से भी अधिक है। सवाल यह उठता है कि इन अपात्र लोगों को योजना का लाभ किस आधार पर मिला? क्या यह विभागीय लापरवाही है या जानबूझकर किया गया खेल?
भवन दिए, फिर तोड़कर बनाए गए महल और दुकानें!
मामला सिर्फ़ पात्रता तक सीमित नहीं है। जिन लाभार्थियों को भवन आवंटित किए गए, उनमें से कुछ ने तो उन भवनों को तोड़कर अपनी मनमर्जी से दोबारा निर्माण कार्य कर लिया – कोई दो मंज़िला महल बना बैठा है तो किसी ने घर की जगह दुकान खोल ली है। क्या योजना की शर्तों में ऐसा कोई प्रावधान था जो लाभार्थी को सरकारी भवन तोड़ने और पुनर्निर्माण की छूट देता है?
जवाबदेही कौन लेगा?
अगर यह निर्माण कार्य बिना अनुमति के हुआ है तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई? और अगर अनुमति दी गई है, तो किस अधिकारी ने इसकी स्वीकृति दी और किस आधार पर? यह साफ़ दर्शाता है कि विभागीय स्तर पर या तो गंभीर लापरवाही हुई है या फिर रसूखदारों के दबाव में नियमों को मोड़ा गया है।
हाउसिंग बोर्ड की चुप्पी सवालों के घेरे में
यदि लाभार्थी सरकारी भवनों को मनमर्जी ढंग से तोड़ सकते हैं और उनका पुनर्निर्माण कर सकते हैं, तो फिर हाउसिंग बोर्ड क्यों नहीं खुले तौर पर नोटिस जारी करता कि “यह योजना अब सिर्फ रसूख वालों के लिए है”?
क्या कहती हैं योजना की शर्तें?
पात्रता: सालाना आय ₹6 लाख से कम होना अनिवार्य।,भवन परिवर्तन प्रतिबंधित: भवन तोड़ने या पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं,व्यावसायिक उपयोग वर्जित: किसी भी प्रकार की दुकान या व्यावसायिक गतिविधि योजना के अंतर्गत आवंटित भवन में मान्य नहीं।, किसी भी संशोधन हेतु पूर्व स्वीकृति आवश्यक।
अटल आश्रय योजना जनकल्याण के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन वर्तमान हालातों में यह योजना सिर्फ ‘अटल’ नाम तक सीमित रह गई है। जब तक जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती और नियमों को सख्ती से लागू नहीं किया जाता, तब तक ऐसी योजनाएं भ्रष्टाचार और मनमानी की भेंट चढ़ती रहेंगी।
अगर नहीं हुई विभागीय कार्रवाई तो होगी ईओडब्ल्यू शाखा में शिकायत