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तो क्या आईटीआई बेनीबारी में शिक्षा के नाम पर हो रही लूट में रीवा-जबलपुर-भोपाल तक फैला भ्रष्टाचार का जाल

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तो क्या आईटीआई बेनीबारी में शिक्षा के नाम पर हो रही लूट में रीवा-जबलपुर-भोपाल तक फैला भ्रष्टाचार का जाल

 

घोटालेबाज़ प्राचार्य के खिलाफ गंभीर वित्तीय व नैतिक आरोप, फिर भी विभाग मौन | निर्माण कार्य में पत्थर जैसी बेईमानी, RTI की खुली अवहेलना | महिला फैकल्टी से बदसलूकी के बावजूद संरक्षण में क्यों है आरोपी?

 

अनूपपुर::अनूपपुर जिले की शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था (आईटीआई) बेनीबारी में जो कुछ वर्षों से चल रहा है, वह केवल एक संस्था में भ्रष्टाचार का मामला नहीं है — यह उस पूरे तंत्र का आईना है जो सत्ता, पद और पैसों के लालच में शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को भी शर्मसार करने से नहीं चूकता।

जहां आईटीआई जैसे संस्थानों का उद्देश्य युवाओं को तकनीकी शिक्षा देकर उन्हें सशक्त बनाना होता है, वहीं बेनीबारी आईटीआई में प्राचार्य ने उसे निजी संपत्ति की तरह चलाते हुए घोटालों, नैतिक पतन और सत्ता की चाटुकारिता का अड्डा बना दिया है।

 

कोटा दिखाया, कडप्पा लगाया: निर्माण में करोड़ों का फर्जीवाड़ा

 

संस्थान में हुए सौंदर्यीकरण और मरम्मत कार्यों में “कोटा स्टोन” जैसी महंगी सामग्री कागज़ों में दिखाई गई, जबकि ज़मीन पर घटिया और सस्ता “कडप्पा पत्थर” लगाया गया। निर्माण कार्य की गुणवत्ता न के बराबर रही, और इसके बावजूद नगर पालिका के इंजीनियर ने बिना स्थल निरीक्षण के ही भुगतान की संस्तुति कर दी।

प्रश्न यह है: यह लापरवाही थी, या सुनियोजित साजिश?

 

चहेते ठेकेदारों को लाभ, टेंडर प्रक्रिया दरकिनार

 

मरम्मत कार्यों के लिए न तो कोई टेंडर निकाला गया, न ही पारदर्शिता का पालन हुआ। सीधे अपने खास ठेकेदारों को कार्य सौंपा गया और लाखों का भुगतान फर्जी बिलों के माध्यम से कर दिया गया। बिल फर्जी, काम अधूरा, गुणवत्ता शर्मनाक फिर भी भुगतान पूरा।

यह मामला स्पष्ट रूप से वित्तीय अपराध की श्रेणी में आता है, जिसमें तकनीकी शिक्षा विभाग की चुप्पी खुद एक बड़ा सवाल बन चुकी है।

 

RTI का खुला उल्लंघन: भ्रष्टाचार की परतें छिपाने की कोशिश?

 

जब इस घोटाले से जुड़ी जानकारी RTI के माध्यम से मांगी गई, तो महीनों तक कोई जवाब नहीं मिला। रीवा के संयुक्त संचालक ने स्पष्ट आदेश दिए थे कि 7 दिनों में जानकारी दी जाए फिर भी प्राचार्य ने टालमटोल की नीति अपनाई।

क्या यह जानबूझकर किया गया प्रयास था ताकि भ्रष्टाचार की परतें उजागर न हों?

 

चरित्रहीनता की हद: महिला फैकल्टी से अभद्रता, फिर भी संरक्षण क्यों?

 

इस आर्थिक घोटाले से भी अधिक शर्मनाक बात यह है कि प्राचार्य पर एक महिला गेस्ट फैकल्टी के साथ अभद्र व्यवहार और छेड़छाड़ का आरोप है। मामला थाने तक पहुंचा, लेकिन महज़ मुचलके पर छोड़ दिया गया। प्रश्न यह है: क्या राजनीतिक पहुंच और पद की ताकत इतनी बड़ी है कि एक महिला को न्याय तक नहीं मिल सकता?

 

रीवा, जबलपुर और भोपाल की ‘राहत यात्रा’: सिस्टम की चुप्पी या मिलीभगत?

 

जैसे ही इन आरोपों की खबरें मीडिया में आने लगीं, प्राचार्य अनूपपुर से लेकर रीवा, जबलपुर और भोपाल तक लगातार दौड़ते देखे गए। बताया जा रहा है कि रीवा के जिन अधिकारियों के पास विभागीय नियंत्रण है, वे प्राचार्य के “पुराने संबंधी” हैं — जो उन्हें लगातार बचाते रहे हैं।

एक ही संस्था में वर्षों से जमे इस प्राचार्य पर आखिर नियम क्यों लागू नहीं होते? क्यों समय-समय पर तबादले होने वाले अन्य शिक्षकों के लिए जो नियम होते हैं, वो यहां शिथिल हो जाते हैं?

क्या यह अकेले प्राचार्य की करतूत है या पूरे तंत्र की बीमारी?

नगर पालिका के इंजीनियर

तकनीकी शिक्षा विभाग के अफसर

 

और कथित राजनीतिक संरक्षण

 

 

इन सबकी भूमिका की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। क्योंकि यह अब केवल आर्थिक अनियमितता का मुद्दा नहीं रहा — यह शिक्षा व्यवस्था की साख, एक महिला कर्मचारी की गरिमा और जन विश्वास से जुड़ा मामला बन चुका है।

शिक्षा के नाम पर घोटाले, महिला के साथ दुर्व्यवहार, RTI की अवहेलना, राजनीतिक भागदौड़ और विभागीय मौन — इन सबके खिलाफ अब कार्रवाई समय की मांग है।>जब तक बेनीबारी जैसे मामलों में दोषियों को सजा नहीं मिलती, तब तक शिक्षा का मंदिर भ्रष्टाचार का अखाड़ा ही बना रहेगा।

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