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क्या मुख्य अभियंता की साख पर लग रहा है दाग?

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क्या मुख्य अभियंता की साख पर लग रहा है दाग?

 

राख प्रबंधक पर संरक्षण का आरोप, न्यायालय आदेश का दुरुपयोग कर वर्षों से कुर्सी से चिपके!

 

अनूपपुर।

अमरकंटक ताप विद्युत गृह (210 मेगावाट) को प्रदेश में ऊर्जा नीति और प्रबंधन के क्षेत्र में कई पुरस्कार भले ही मिल चुके हों, लेकिन अंदरूनी भ्रष्टाचार और नियमों की अनदेखी की परतें अब खुलने लगी हैं।

जहां अन्य कर्मचारियों के तबादले नियमों के अनुसार हो रहे हैं, वहीं एक ‘राख प्रबंधक’ पिछले 10 वर्षों से उसी कुर्सी से हिलने का नाम नहीं ले रहा — और यह सब न्यायालय के एक अस्थायी आदेश (स्टे ऑर्डर) की आड़ में हो रहा है, जिसकी वैधता और अवधि अब स्वयं में जांच का विषय बन गई है।

 

स्टे ऑर्डर की समय-सीमा क्या होती है?

 

न्यायिक प्रक्रिया के जानकार बताते हैं कि किसी कर्मचारी द्वारा स्थानांतरण को चुनौती देते हुए लिया गया स्टे ऑर्डर सामान्यतः 3 से 6 माह की अवधि का होता है — वो भी केवल तब तक के लिए जब तक कोर्ट में अंतिम निर्णय न आ जाए।

लेकिन यहां मामला अलग है: स्टे ऑर्डर की वैधता समाप्त हुए वर्षों बीत चुके हैं, फिर भी अधिकारी अब तक उसी स्थान पर बना हुआ है, और विभाग भी इसकी पुष्टि या अनुपालन की दिशा में कोई कार्यवाही नहीं कर रहा।

 

 

न्यायालय आदेश की आड़ में कुर्सी से चिपका प्रबंधक – क्या नियमों से ऊपर है यह व्यक्ति?

 

सूत्रों के अनुसार, यह प्रबंधक सिर्फ कोर्ट आदेश का सहारा नहीं ले रहा, बल्कि मुख्य अभियंता से लेकर मंडल मुख्यालय तक मजबूत राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त किए हुए है। यही कारण है कि उच्च न्यायालय का आदेश केवल इस एक व्यक्ति के लिए ‘ढाल’ बन गया है — जबकि अन्य कर्मचारियों को उसी न्यायिक प्रणाली में कोई राहत नहीं मिलती।

 

 

राख में काली कमाई प्लांट के गेट से लेकर टेंडर तक का खेल

 

विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो प्रबंधक द्वारा प्लांट के गेट पर अपने निजी गुर्गों को तैनात कर अवैध वसूली का रैकेट चलाया जा रहा है। राख की बिक्री और उसके परिवहन में बड़े पैमाने पर घोटाले की आशंका जताई जा रही है।

बेवरेज टेंडर को बार-बार खोला जाना और फिर बिना कारण रद्द कर देना, और मंडल की भूमि पर निजी अवैध व्यवसाय शुरू करने की साजिश — ये सब दर्शाते हैं कि अधिकारी नियमों का नहीं, अपने रसूख का पालन कर रहा है।

 

क्या संरक्षणदाताओं की भी होगी जांच?

 

अवैध कमाई का हिस्सा ऊपर तक पहुंचने की चर्चाएं अब खुलकर सामने आ रही हैं। ऐसे में सवाल यह है कि —

क्या विभागीय मंत्री और सचिव भी इस बात से अनजान हैं?

 

क्या संरक्षण देने वाले अफसरों और नेताओं की भी जवाबदेही तय होगी?

 

अब जब “तीसरी आंख” खुल चुकी है, और भ्रष्टाचार का घड़ा भर चुका है, तो यदि विभाग या सरकार ने समय रहते कार्रवाई नहीं की, तो इससे विभागीय छवि और जनविश्वास पर गंभीर आघात पहुंचना तय है।

 

यह केवल एक तबादले की बात नहीं है — यह सवाल है विभागीय ईमानदारी, न्यायिक आदेशों के सही उपयोग, और शासन की पारदर्शिता का।

यदि आज नियमों से परे रहकर कोई अधिकारी स्टे ऑर्डर की आड़ में वर्षों तक विभागीय प्रणाली को धता बताता रहे, तो कल इसका दुरुपयोग अन्य भ्रष्ट अधिकारी भी करेंगे।

उक्त अधिकारी के स्टे ऑर्डर की वैधता की न्यायिक समीक्षा कर स्थानांतरण नीति के उल्लंघन पर जिम्मेदार अधिकारियों पर जवाबदेही तय की जाए।

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