आईटीआई बेनीबारी में करोड़ों का घोटाला, चरित्रहीनता की पराकाष्ठा: शिक्षा का मंदिर बना भ्रष्टाचार का अखाड़ा
आईटीआई बेनीबारी में करोड़ों का घोटाला, चरित्रहीनता की पराकाष्ठा: शिक्षा का मंदिर बना भ्रष्टाचार का अखाड़ा
ज्ञानेन्द्र पांडेय
अनूपपुर
जहां तकनीकी शिक्षा के ज़रिए युवा भविष्य को संवारने की बात होती है, वहीं अनूपपुर जिले की शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था (आईटीआई) बेनीबारी आज भ्रष्टाचार, नैतिक पतन और प्रशासनिक असंवेदनशीलता का पर्याय बन गई है।
यह रिपोर्ट न केवल एक आर्थिक घोटाले का पर्दाफाश करती है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि कैसे एक प्राचार्य ने वर्षों से संस्था को निजी जागीर की तरह चलाया — और शिक्षा की जगह सिर्फ शोषण, दलाली और सत्ता की चाटुकारिता को बढ़ावा दिया।
मरम्मत कार्य में हुआ पत्थरों जैसा घोटाला: कागज़ों में ‘कोटा’, ज़मीन पर ‘कडप्पा’
संस्थान में भवन की मरम्मत एवं सौंदर्यीकरण के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये स्वीकृत किए गए। दस्तावेज़ों में साफ तौर पर “कोटा स्टोन” दिखाया गया — जो कि टिकाऊ और महंगा निर्माण सामग्री होता है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट निकली।
वास्तव में घटिया और सस्ता ‘कडप्पा पत्थर’ लगाया गया, जिसकी कीमत कोटा से एक तिहाई भी नहीं है। यह न केवल तकनीकी मानकों का उल्लंघन है, बल्कि साफ तौर पर धोखाधड़ी और अपराध की श्रेणी में आता है।
इस कार्य की गुणवत्ता पर नगर पालिका के सिविल इंजीनियर ने बिना स्थल निरीक्षण के ही मुहर लगा दी — सवाल ये उठता है कि क्या ये महज़ लापरवाही थी या फिर साज़िशन की गई मिलीभगत?
मनमाने भुगतान और ‘खास ठेकेदारों’ को लाभ: पारदर्शिता को सिरे से नकारा गया
जानकारी के अनुसार, मरम्मत कार्यों में किसी भी तरह की नियमित टेंडर प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। इसके विपरीत, प्राचार्य द्वारा अपने चहेते ठेकेदारों को सीधे कार्य सौंप दिए गए और लाखों रुपये के भुगतान उनके खातों में कर दिए गए।
जिन बिलों को प्रस्तुत कर भुगतान कराया गया, उनमें:
बिल फर्जी पाए गए,
कार्यस्थल पर अपेक्षित कार्य नहीं हुआ,
सामग्री की गुणवत्ता बेहद घटिया निकली।
यह मामला स्पष्ट वित्तीय अनियमितता और सरकारी धन की बंदरबांट का है।
RTI आदेश की खुली अवहेलना: किसे बचाया जा रहा है?
जब इस पूरे घोटाले से जुड़ी जानकारी को उजागर करने के लिए सूचना के अधिकार (RTI) के तहत आवेदन किया गया, तो प्राचार्य ने महीनों तक जवाब नहीं दिया।
जबकि रीवा के संयुक्त संचालक दीपक गंगाजली ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि 7 दिनों के भीतर सूचना निशुल्क उपलब्ध कराई जाए।
लेकिन लगातार तारीख पर तारीख मिलती रही। कोई दस्तावेज़ नहीं मिला। न कोई जवाब आया।
क्या यह जानबूझकर भ्रष्टाचार की परतें छिपाने की कोशिश थी?
या फिर ऊपर से संरक्षण प्राप्त था, जिसकी आड़ में यह सब दबाया गया?
प्राचार्य का नैतिक पतन: गेस्ट फैकल्टी के साथ अभद्रता, लेकिन कार्रवाई नहीं
इस पूरे आर्थिक घोटाले से भी अधिक चिंताजनक और घिनौना पहलू यह है कि संस्थान के वर्तमान प्राचार्य पर एक महिला गेस्ट फैकल्टी के साथ छेड़छाड़ और अभद्र व्यवहार का आरोप भी है।
मामला थाना क्षेत्र में पहुंचा, लेकिन थाना प्रभारी ने महज मुचलके पर रिहाई दे दी। न विभाग ने कोई कार्रवाई की, न ही महिला कर्मचारी को न्याय मिला।
क्या ‘पद की पकड़’ और ‘राजनीतिक पहुंच’ इस देश में चरित्रहीनता को भी माफ कर देती है?
जब किसी संस्था का प्रमुख, अपने ही अधीनस्थों के साथ बदसलूकी करता है — और उसके बावजूद उसे हटाया नहीं जाता — तो ये व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता है।
कभी खुद को मंत्री और अफसरों का “खासम खास” बताता है प्राचार्य: अनूपपुर से लेकर राजधानी तक भागदौड़
प्राचार्य की सत्ता और ऊँचे पदों से निकटता की कथाएं क्षेत्र में चर्चा का विषय हैं। वह स्वयं को वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों का खास बताकर अपना बचाव करता रहा है।
अब, जब भ्रष्टाचार और नैतिक आरोपों की परतें खुलने लगी हैं, तो प्राचार्य अनूपपुर से लेकर भोपाल तक दौड़ लगा रहे हैं, ताकि किसी भी तरह कार्रवाई को टाला जा सके।
प्रश्न यह है — यदि इतना ही निर्दोष हैं, तो जांच से भाग क्यों रहे हैं?
क्या यह केवल एक व्यक्ति का भ्रष्टाचार है, या पूरा तंत्र शामिल है?शायद यह अकेले प्राचार्य की करतूत नहीं — बल्कि एक संगठित भ्रष्टाचार नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें:नगर पालिका के अधिकारी तकनीकी शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अफसर और राजनीतिक संरक्षण में पल रहे कुछ रसूखदर
अब चुप रहना भी अपराध है: प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग को देना होगा जवाब
एक महिला के आरोप के बाद भी उसे कैसे संरक्षण मिल रहा है?
“भ्रष्टाचार पर चुप रहना उसे स्वीकार करना है। अब आवाज़ उठाना वक्त की मांग है — क्योंकि शिक्षा का सवाल है, भविष्य का सवाल है।”