सीमा पर सुलग रहा अपराध: अनिल और अंकुर बना रहे जुए का साम्राज्य, प्रशासन बना मूक दर्शक
ज्ञानेंद्र पांडेय 7974034465
अनूपपुर
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर इन दिनों एक नया और खतरनाक जुआ साम्राज्य तेजी से पैर पसार रहा है – जिसकी कमान संभाली है मरवाही के अनिल और शहडोल के अंकुर ने। यह कोई साधारण जुआ नहीं, बल्कि सुनियोजित अपराध उद्योग बन चुका है, जो दो राज्यों की सीमा का फायदा उठाकर कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा है।
अनिल: ‘चौकीदार’ नहीं, जुए का असली सरगना
छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे मरवाही क्षेत्र का कुख्यात नाम अनिल, अब खुद को सिर्फ जुआ संचालक नहीं, बल्कि प्रशासन का ‘मैनेजर’ तक बताता है।
सूत्रों के अनुसार, अनिल अपने फ़ड़ को संचालित करने के लिए पूरे नेटवर्क को मैनेज कर रहा है – जिसमें स्थानीय पुलिस और प्रशासन से कथित साठगांठ, वाहनों की व्यवस्था, खिलाड़ियों की आवक-जावक, ब्याज पर रकम, और निगरानी के लिए ‘चौकीदारों’ की नियुक्ति तक शामिल है।
अनिल का ये नेटवर्क लगातार ठिकाने बदल-बदलकर जुए के अड्डे चला रहा है, जिससे पुलिस की पकड़ में आना मुश्किल हो रहा है। यह वही अनिल है जिसने पहले भी कई घरों को तबाह किया और आज फिर नए सिरे से अपना आपराधिक कारोबार दोबारा खड़ा कर रहा है।
अंकुर: बेरोजगारों का दुश्मन, जुए का दानव
शहडोल और अनूपपुर जिले में जुए का पर्याय बन चुका है अंकुर। यह व्यक्ति खासकर बेरोजगार युवाओं को टारगेट कर, उन्हें आसान पैसा कमाने के लालच में जुए के दलदल में धकेल रहा है।
पुलिस और अंकुर के बीच की कथित ‘चोली-दामन’ की नजदीकी को लेकर पहले भी सवाल उठ चुके हैं, लेकिन कार्रवाई शून्य रही है।
अंकुर की गैंग न केवल फ़ड़ चलाती है, बल्कि पूरे संभाग में फैलते नेटवर्क के जरिए क्षेत्रीय युवाओं को जोड़ने का काम करती है। कोतमा, केसवाही, पाली, बुढार, अमरकंटक से लेकर शहडोल और अनूपपुर तक, खिलाड़ियों की खेप हर रोज इस नेटवर्क में जुड़ रही है।
सीमा पर बना जुर्म का नया हब, क्या सो रहा प्रशासन?
इन दोनों सरगनाओं – अनिल और अंकुर के आपसी गठजोड़ ने दो राज्यों की सीमावर्ती ज़मीन को जुए के अड्डों और अवैध गतिविधियों का हब बना दिया है।
जहां स्थानीय प्रशासन की आंखें मूंदना अब एक संयोग नहीं, बल्कि साज़िश प्रतीत होती है।
दोनों राज्य की सीमाएं क्रॉस कर कार्रवाई से बचने का खेल, पुलिस की ढील, और अपराधियों का बेखौफ चेहरा ये सभी दर्शाते हैं कि अब यह मामला केवल अवैध जुआ का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और मिलीभगत का है।
अब सवाल यह है – क्या अनिल और अंकुर प्रशासन से ज़्यादा ताकतवर हो चुके हैं?
अनिल खुद को ‘प्रशासन का चौकीदार’ क्यों कहता है?
अंकुर बेरोजगारों को जुए की गिरफ्त में धकेलकर किसकी शह पर बच निकलता है?
क्या दोनों राज्यों की पुलिस सिर्फ सीमाओं की चौकसी तक सीमित रह गई है? अब आवश्यकता है छत्तीसगढ़ सहित मध्य प्रदेश की पुलिस को एकत्र होकर ऐसे अवैध कारोबारी पर कार्रवाई करने की