बरगवां अमलाई नगर परिषद में भ्रष्टाचार की गहराई: शासकीय खजाने से रिश्तेदारों को रोजगार, ठेकेदारों को करोड़ों का फायदा
बरगवां अमलाई नगर परिषद में भ्रष्टाचार की गहराई: शासकीय खजाने से रिश्तेदारों को रोजगार, ठेकेदारों को करोड़ों का फायदा
अनूपपुर |
बरगवां अमलाई नगर परिषद एक बार फिर सुर्खियों में है—इस बार कारण हैं सरकारी योजनाओं की खुली लूट, अपनों को फायदा पहुंचाने की सुनियोजित साजिश और जनधन का बेशर्मी से दुरुपयोग। नगर परिषद के भीतर चल रहा यह ‘सिस्टमेटिक घोटाला’ अब इतना गहरा हो गया है कि शासकीय राशि का बंदरबांट ही यहां की नई कार्य संस्कृति बन चुकी है।
भर्ती नहीं, पारिवारिक सौगात: अपनों के लिए सरकारी नौकरी का शॉर्टकट
आउटसोर्सिंग के नाम पर नगर परिषद ने जो भर्ती प्रक्रिया अपनाई, वह न तो पारदर्शी थी और न ही नियमानुसार। बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने के बजाय, नौकरी उन लोगों को दी गई जो या तो सत्ताधारी नेताओं के रिश्तेदार हैं या फिर चुनाव के समय “सेवा” देने वाले खास चेले।
स्थिति यह है कि अनुभवहीन, अयोग्य लोग जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं—जैसे एक व्यक्ति जो कुछ माह पूर्व तक दुकान में मजदूरी कर रहा था, अब “इलेक्ट्रीशियन” की कुर्सी पर बैठा है। ऐसे में नगर की अधोसंरचना और सुरक्षा की कल्पना ही डरावनी हो जाती है।
फर्जी अटेंडेंस और वेतन लूट का सिंडिकेट
नगर परिषद में दर्जनों ऐसे कर्मचारी हैं जो नाम मात्र के लिए नियुक्त हैं। हाज़िरी रजिस्टर में नाम दर्ज है, पर वे धरातल पर नजर नहीं आते। कहीं कोई चौक पर बैठा गपशप में व्यस्त है, तो कोई अधिकारी के घर निजी काम कर रहा है—और वेतन सरकारी खाते से हर महीने उनकी जेब में जा रहा है।
यह कोई छोटी-मोटी चूक नहीं, बल्कि एक संगठित भ्रष्टाचार है—जिसमें परिषद के जिम्मेदारों की भूमिका भी संदिग्ध है।
एनुअल टेंडर बना भ्रष्टाचार का वार्षिक उत्सव
बरगवां, जो पहले ही शौचालय घोटाले के कारण राज्य स्तर पर बदनाम हो चुका है, अब एनुअल टेंडर घोटाले के कारण फिर चर्चा में है। बिना उचित निविदा प्रक्रिया, बिना प्रतिस्पर्धा, एक ही चहेते ठेकेदार को सारे कार्य सौंपे जा रहे हैं।
ऐसे में यह सवाल उठता है—क्या यह ठेकेदार “काबिल” है या फिर “कृपापात्र”?
यदि इन टेंडरों की निष्पक्ष जांच हो, तो खुलासा हो सकता है कि करोड़ों रुपये का खेल सिर्फ कागजों पर खेला जा रहा है।
श्रमिकों का शोषण: सुरक्षा नहीं, सुविधा सिर्फ ठेकेदार को
शासन के नियमों के अनुसार, मजदूरों को कार्य प्रारंभ से पूर्व हेलमेट, ग्लव्स और अन्य सुरक्षा उपकरण मिलना चाहिए। लेकिन यहां सारा बोझ नगर परिषद के बजट पर डालकर ठेकेदार अपनी जेबें भर रहा है।
बदहाल यह है कि कई पुराने कर्मचारी, जो ग्राम पंचायत काल से कार्यरत हैं, न कैटेगरी में शामिल हैं, न ही समय पर वेतन पा रहे हैं। PF और इंश्योरेंस की बात तो दूर, उन्हें मानवाधिकार तक से वंचित रखा गया है।
मिट्टी फीलिंग में भी मिट्टी डाल दी गई प्रक्रिया पर
मिट्टी फीलिंग कार्य में भी परिषद ने शुद्ध रूप से मनमानी की है। टेंडर प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए, नियमों की अनदेखी कर कार्य आवंटित किया गया है। बिना किसी मापदंड के, कार्य का मूल्यांकन किए बगैर लाखों की राशि का भुगतान हुआ। राजस्व की सीधी चोरी और सरकारी नियमों का सरासर उल्लंघन—यह दर्शाता है कि परिषद अब सेवा संस्था नहीं, बल्कि “कमाई का अड्डा” बन चुकी है।
क्या प्रशासन की नींद अब खुलेगी?
यह पूरा मामला न केवल घोर लापरवाही का परिचायक है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि नगर परिषद के भीतर जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग या तो अक्षम हैं या मिलीभगत में शामिल हैं।
जनता अब सवाल पूछ रही है
क्या जिला प्रशासन इस खुली लूट पर चुप रहेगा?
क्या दोषियों पर कोई कार्रवाई होगी या फाइलों में जांचें दबी रह जाएंगी?
क्या नगर के युवा सिर्फ वादे सुनते रहेंगे और रोजगार “खास लोगों” के लिए ही सुरक्षित रहेगा?
उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की उठ रही मांग
बरगवां अमलाई के ईमानदार नागरिकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि जिला कलेक्टर तत्काल इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र जांच कराएं। दोषियों की पहचान कर, उन पर विधि सम्मत कठोर कार्रवाई की जाए।
जनधन का ऐसा दुरुपयोग अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।