News By- हिमांशु उपाध्याय / नितिन केसरवानी
कौशाम्बी: बारिश की बूँदें जब ज़िंदगी पर आफ़त बनकर बरसें, तो समझिए कहीं न कहीं व्यवस्था की छत टपक रही है। ऐसी ही एक दिल दहला देने वाली घटना कौशाम्बी जिले की नगर पंचायत पूरब पश्चिम शरीरा के अंबेडकर नगर (रामाधीन का पूरा) में बुधवार सुबह हुई, जब एक कच्चे खपरैला मकान की दीवार ढहने से शुमिया देवी (49) की मलबे में दबकर मौत हो गई।
पीड़ित इन्द्रपाल अपने परिवार सहित इसी कमजोर और जर्जर आशियाने में बरसों से गुजर-बसर कर रहे थे। बीते एक सप्ताह से हो रही लगातार बारिश ने दीवारों को इतना खोखला कर दिया था कि अंततः वो भरभरा कर गिर गई। उस वक्त कमरे में शुमिया देवी सो रही थीं| दुर्भाग्यवश, वो मलबे से बाहर नहीं निकल सकीं। उनके पति और अन्य परिजन किसी तरह बाल-बाल बच गए।
सरकारी योजना होती तो मेरी पत्नी जिंदा होती- इन्द्रपाल
इन्द्रपाल की आंखों में आंसू हैं, पर शिकायत भी है। वे पूछते हैं
क्या हम सरकारी आवास के हकदार नहीं थे?
अगर मकान मिला होता तो क्या मेरी बीवी मरती?
इन सवालों में सिर्फ एक शोकाकुल पति का दर्द नहीं, बल्कि उस सिस्टम पर करारी चोट है जो हर गरीब को पक्का मकान देने का दावा करता है। सिस्टम कब जागेगा मौत के बाद? पीड़ित परिवार की हालत देखकर यह कहना मुश्किल नहीं कि यह परिवार प्रधानमंत्री आवास योजना के स्पष्ट पात्र थे। फिर क्यों नहीं मिला मकान?
क्या नगर पंचायत स्तर पर लापरवाही हुई?
क्या सर्वे के नाम पर खानापूर्ति हुई?
क्या सूची में नाम जोड़ने के लिए किसी ने ‘सुनवाई’ नहीं की?
डीएम ने दिया आश्वासन अब मिलेगा मकान, आर्थिक मदद भी हादसे के बाद ज़िलाधिकारी कौशाम्बी मधुसूदन हुल्गी ने मामले का संज्ञान लेते हुए पीड़ित परिवार को सरकारी आवास देने और शासन स्तर से मिलने वाली आर्थिक सहायता (मृतक राहत) जल्द उपलब्ध कराने का भरोसा दिलाया है।
लेकिन अब सवाल ये है
क्या अब हर गरीब को छत तभी मिलेगी जब कोई दीवार उसके ऊपर गिर जाए?
यह महज एक हादसा नहीं यह व्यवस्था की गिरती ईंटों का शोर है।
कब तक लोग कच्चे घरों में अपनी जान की कीमत चुकाते रहेंगे, और सरकारें सिर्फ मदद की घोषणा करती रहेंगी?