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कौशांबी लोहंदा कांड: राजनीति में दोमुंही बयानबाज़ी और नैतिक ढोंग!

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लोहंदा कांड में सपा का स्टैंड क्लियर नहीं, पर नीयत का तमाशा साफ़ दिखता है

लोहंदा कांड पर समाजवादी पार्टी का स्टैंड क्या है? एक लाइन में कहें तो जो जहां खड़ा है, वहीं से बक रहा है। पूर्व सांसद राजाराम पाल कहते हैं मासूम बेटी के साथ अत्याचार एक साज़िश है। वहीं सपा के पूर्व मंत्री पवन पांडे कहते हैं ब्राह्मण परिवार को फंसाया जा रहा है, और इसके पीछे डिप्टी सीएम केशव मौर्य का हाथ हैं। अब जनता पूछ रही सपा का असली स्टैंड क्या है? क्या बेटी के पक्ष में खड़े हैं, या ब्राह्मण परिवार के साथ सहानुभूति जताकर सत्ता पर ठीकरा फोड़ना चाहते हैं? ये सवाल बड़ा है। लेकिन नेता जी जवाब देने की बजाय कैमरा एंगल तलाश रहे हैं। इनकी राजनीति देखकर एक पुरानी कहावत याद आती है। जहाँ न्याय की जरूरत हो, वहां वोट की गिनती शुरू हो जाती है और सबसे बड़ी बात, ये नेता तवायफ से बदतर क्यों हैं? क्योंकि तवायफ कम से कम अपना पेशा नहीं छुपाती। वो कहती है कि वो बिक रही है, लेकिन ये नेता इंसानियत को बेचते हैं, मासूमियत को नीलाम करते हैं, और फिर खुद को जनसेवक बताते हैं। क्या लोहंदा में हुई घटना सिर्फ एक केस है? या फिर सियासत के गलियारों में यह एक वोट जेनरेटर इवेंट बन गया है? कभी मासूम की मौत पर आँसू, कभी जाति की ढाल, कभी विरोधी दल पर वार। सियासत इतनी गिर चुकी है कि अब उसे उठाने के लिए जेसीबी भी कम पड़ेगी। तो अब जनता को ही तय करना है। ये नेता इंसाफ़ चाहते हैं या सिर्फ इलेक्शन इवेंट मैनेजमेंट कर रहे हैं?

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