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बोली से मिष्ट व साहित्य से विशिष्ट है हिन्दी:शासकीय महाविद्यालय झिरन्या में हुआ आयोजन

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*झिरन्या। खरगोन*

 

*संवाददाता दिलीप बामनिया*

 

बोली से मिष्ट व साहित्य से विशिष्ट है हिन्दी:शासकीय महाविद्यालय झिरन्या में हुआ आयोजन

 

झिरन्या। हिन्दी में सम्मान का भाव झलकता है इसलिए शिष्ट बन जाती है। बोलने में मीठी है तो मिष्ट कहलाती है और साहित्य श्रेष्ठ होने से विशिष्ट हो जाती है। हिन्दी में बात हो, संवाद हो, बोध हो और हिन्दी में ही शोध हो तो भारत की तस्वीर बदल सकती है। हमें अंग्रेजीयत के आवरण को हटाकर हिन्दी को सम्मानपूर्वक धारण करना चाहिए, तभी राष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता को बचाया जा सकता है।

उक्त विचार भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ के प्रभारी डॉ. प्रवीण मालवीया ने शासकीय महाविद्यालय झिरन्या में व्यक्त किये। हिन्दी दिवस पखवाड़ा के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम स्लोगन, निबंध, परिचर्चा और काव्यपाठ का आयोजन हुआ,जिसमें ग्रन्थपाल अमन यादव ने रामधारी सिंह दिनकर की रचना कृष्ण की चेतावनी प्रस्तुत की। डॉ. अंजू चौहान ने गांधीजी पर और डॉ. ओमवती सोलंकी ने हिन्दी की महत्ता पर कविता का वाचन किया।

स्लोगन प्रतियोगिता में शिवानी मासरे प्रथम व ललिता सिसोदिया द्वितीय स्थान पर रहीं,वहीं निबंध प्रतियोगिता में निकिता ग्वाले ने प्रथम व छीता डावर ने द्वितीय स्थान अर्जित किया। इस अवसर पर डॉ. सुबोध व्यास, बसन कन्नौजे, रितु गंगारेकर, आदिल शेख, संजय धोपे, श्रीराम कन्नौजे व झिनला कन्नौजे सहित विद्यार्थी मौजूद थे।

 

*संवाददाता दिलीप बामनिया*

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