*ताक पर सीनियरों की फ़ौज, “जुगाड” से जूनियर की मौज*
सागर संभाग में उच्च शिक्षा विभाग का कारनामा ?
सामने आया उच्च शिक्षा विभाग में लापरवाही और मनमानी का एक और उदाहरण
मनीष कुमार राठौर / 8109571743
सागर / भोपाल । आखिर मध्यप्रदेश को ऐसे ही अजब गजब नहीं कहा जाता, यहां किस विभाग में कब क्या गुल खिल जाए कोई नहीं जनता। विभाग के बड़े अफसरों की मनमानी और कर्मचारीयों की जुगाड के नतीजे जब भी सामने आते हैं तभी सरकार की किरकिरी करा देते हैं। उच्च शिक्षा विभाग का ऐसा ही एक मामला सागर संभाग से सामने आया है जो जाहिर तौर पर उच्च न्यायालय के निर्देश के ख़िलाफ़ नजर आ रहा है। विभागीय सूत्र बता रहे हैं कि अगर इस मामले की असल “जुगाड” सामने आ गई तो सवालों की आंच मंत्री तक पहुंचते देर नहीं लगेगी।
*क्या है “जुगाड” का पूरा मामला*
दरअसल “जुगाड” का ये खेल उच्च शिक्षा विभाग सागर संभाग के अतिरिक्त संचालक के स्थानांतरण के बाद शुरू हुआ। बताया जा रहा है कि स्थानांतरण होने के बाद विभाग के ही एक प्राध्यापक नीरज दुबे को महज वेतन आहरण की तात्कालिक सुविधा हेतु अतिरिक्त संचालक का प्रभार दे दिया गया। जबकि विभागीय सूत्रों की मानें तो सागर संभाग में कई सीनियर प्रिंसिपलों की मौजूदगी के बाद भी जूनियर को चार्ज देना नियम विरोधी है। एक तरफ जहां इस मामले में नियमों और न्यायालय के निर्देशों को अनदेखा किया गया है वहीं दूसरी ओर जूनियर के नीचे काम करने से सीनियरों में रोष और आक्रोश पनप रहा है। विभागीय व्यवस्था के अनुसार अतिरिक्त संचालक पद का प्रभार संभाग में सेवारत किसी भी प्रिंसिपल को सौंपा जाना चाहिए था लेकिन यहां “जुगाड” काम कर गई और जूनियर बाजी मार ले गए।
*क्या हैं उच्च न्यायालय के निर्देश*
उच्च न्यायालय के निर्देशों की बात की जाए तो यह मामला और गंभीर हो जाता है, दरअसल निर्देश तो यह हैं कि किसी पद के प्रभार यदि आवश्यक हों तो विभागीय अधिकारी कर्मचारियों में जो वरिष्ठ श्रेणी में आता हो उसको ही दिया जाए। इसके साथ ही किसी कनिष्ठ को वरिष्ठ पद का प्रभार देने पर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की सहमति भी निर्देश में आवश्यक बताई गई है।
*जातिगत भेदभाव की कानाफूसी*
इस मामले के अलग अलग रंग भी अपना असर छोड़ रहे हैं, दफ्तरों से बाहर आती कानाफूसी मामले को जातिगत भेदभाव का दृष्टिकोण दे रही है।
दबे सुरों में बताया जा रहा है कि प्राध्यापक नीरज दुबे से वरिष्ठ सभी प्रिंसिपल दलित समाज से आते हैं, और विभाग में हावी सवर्ण लॉबी ने एड़ी चोटी का जोर लगाकर नीरज दुबे को प्रभार दिलाया है। इन बातों की हकीकत जो भी हो लेकिन जातिगत भेदभाव की कानाफूसी दलित समाज के विभागीय अधिकारी कर्मचारियों का मनोबल तोड़ने और मानसिकता बदलने के लिए पर्याप्त है।
*समरथ कहुं नहीं दोष गोसाईं*
तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस की ये चौपाई उच्च शिक्षा विभाग के वजनदार और जुगाड़ू अधिकारी पर पूरी तरह लागू हो रही है। पद के कथित दुरुपयोग के आरोप, मनमानी वसूली और जानबूझकर विभागीय कर्मचारियों के अपमान के किस्से इसके उदाहरण बनते जा रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो वरिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारीयों में तेजी से पनपता रोष और उनके मन में विस्तार करती जातिगत भेदभाव की पीड़ा से जल्द ही मंत्री और अतिरिक्त मुख्य सचिव को अवगत कराया जाएगा।
क्या कहना है ।
आपके द्वारा मामला संज्ञान में लाया गया है, मैं दिखवाता हूं, यदि ऐसा हुआ है ।
प्रबल सिपाहा
उच्च शिक्षा विभाग कमिश्नर