अवैध शराब की बेलगाम पैकरी: उमरिया में कानून व्यवस्था पर भारी पड़ता ‘माफिया मॉडल’
हर गली में नशे की दुकान::प्रशासनिक संरक्षण की खुली मिसाल
अवैध शराब की बेलगाम पैकरी: उमरिया में कानून व्यवस्था पर भारी पड़ता ‘माफिया मॉडल’
उमरिया ज्ञानेंद्र पांडेय 7974034465
उमरिया जिले में अवैध शराब का कारोबार अब सिर्फ गुप्त धंधा नहीं, बल्कि एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है जहां ठेके, पैकरी और पुलिस-प्रशासन की चुप्पी मिलकर एक ऐसा तंत्र बना चुके हैं जिसे ‘कानून से ऊपर’ कहा जा सकता है।
हर गली में नशे की दुकान::प्रशासनिक संरक्षण की खुली मिसाल
शहर के मोहल्लों से लेकर दूरदराज़ के गांवों तक अवैध शराब खुलेआम बिक रही है। हाईवे किनारे बनी अस्थायी दुकानों से लेकर घरों में हो रही ‘ शराब माफिया का नेटवर्क बेखौफ और बेलगाम है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस पूरे नेटवर्क में जनप्रतिनिधियों और पुलिस कर्मचारियों की भागीदारी सामने आ रही है। सूत्रों की मानें तो कई पुलिसकर्मियों ने 10 से 25 लाख रुपये तक का निवेश इन अवैध व्यापारों में कर रखा है, और अब “रक्षक” खुद मुनाफाखोर बन चुके हैं।
जुन्नु और उसका जाल किसके भरोसे फल-फूल रहा है धंधा?
शहर में “जुन्नु” नाम का व्यक्ति आज अवैध शराब के नेटवर्क का ‘ऑपरेशनल बॉस’ बन चुका है। पुलिस विभाग के कुछ अफसरों से उसके नजदीकी रिश्ते हैं, जिनके चलते उस पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
पड़ोसी जिलों तक अवैध सप्लाई की जा रही हैतो सवाल ये उठता है: क्या यह सब कुछ बिना पुलिस संरक्षण के संभव है?
पैकरी का धंधा असली कमाई की चाबी बन चुका है पुलिस का पद?
अब यह चर्चा आम हो चुकी है कि पुलिस विभाग के कुछ कर्मचारी अब कानून-व्यवस्था की ड्यूटी की बजाय अवैध शराब की डीलिंग और डिलीवरी में रुचि रखने लगे हैं। जिन्हें वेतन से संतोष नहीं, वे अब “निवेशक” बनकर, पैकरी से लेकर बिक्री तक में हिस्सेदार हैं।
शराब की एक बोतल से होने वाला मुनाफा, अब शायद कानून पालन से मिलने वाले ‘सम्मान’ से ज्यादा मूल्यवान हो चुका है।
कप्तान की खामोशी मौन स्वीकृति’ या ‘राजनीतिक दबाव’?
पूरे जिले में अवैध शराब का व्यापार चल रहा है, बावजूद इसके न कहीं छापामारी, न कोई गिरफ्तारी। यह प्रशासन की निष्क्रियता नहीं, अपितु भागीदारी की ओर इशारा करता है। कप्तान की चुप्पी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर किसके इशारे पर यह खेल चल रहा है?सवालों के घेरे में पूरा सिस्टम:क्या शराब माफिया को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?