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लापरवाह शिक्षा विभाग के आगे नतमस्तक ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे 

बारिश की वजह से ढह गई स्कूल की छत, कोई जनहानि नहीं

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लापरवाह शिक्षा विभाग के आगे नतमस्तक ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे

 

बारिश की वजह से ढह गई स्कूल की छत, कोई जनहानि नहीं

 

प्रायमरी स्कूल की छत गिरने की जानकारी विभाग के किसी अधिकारी को नहीं आखिर क्यों ?

 

वर्षों पहले कलेक्टर, विधायक को जर्जर स्कूल भवन की दी थी शिकायत

 

बैतूल/सारणी। “पढ़ेगा बच्चा, बढ़ेगा बच्चा” – भारत सरकार की नई शिक्षा नीति का यह नारा दुलारा गांव में खोखला साबित हो रहा है। जहां, बच्चों को मौत के साये में पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बुधवार शाम बारिश की वजह से ग्राम पंचायत बाकुड़ के दुलारा गांव में प्राथमिक शाला भवन की छत गिर गई। गनीमत रही कि घटना शाम 7 से 8 बजे के करीब घटी, जिस समय बच्चे स्कूल में नहीं थे, वरना एक बड़ा हादसा हो सकता था।

 

इस प्राथमिक शाला में लगभग 50 से 60 बच्चे पढ़ते हैं। शाला भवन लगभग 2 साल से क्षतिग्रस्त है, जिसकी जानकारी शासन-प्रशासन को आवेदन के माध्यम से पहले ही दे दी गई थी।

 

नई शिक्षा नीति की धज्जियां, मौत के साये में शिक्षा

 

“पढ़ेगा बच्चा, बढ़ेगा बच्चा” भारत सरकार की नई शिक्षा नीति है। यह नीति बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने पर ज़ोर देती है। मगर सरकार अगर यह नीति बच्चों को मौत के नीचे बैठाकर कर रही है, तो मां-बाप बच्चों को अनपढ़ रखना ही चाहेंगे।

 

मेंटेनेंस के नाम पर खानापूर्ति, 20 साल से जर्जर भवन में पढ़ाई

 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, दो महीने पहले 1 लाख 13 हजार रुपये मेंटेनेंस के नाम पर आए थे, लेकिन 2005 में निर्मित स्कूल भवन को 20 साल तक रगड़कर चलाना प्रशासन की सबसे बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। यह राशि, ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।

 

नियमों को ताक पर रखा

 

जबकि इस प्रकार के जर्जर हो चुके प्राइमरी स्कूल को बदलने के लिए सरकार ने कुछ नियम बनाए हैं। सबसे पहले, स्कूल की बिल्डिंग कितनी खराब है, इसका पता लगाया जाता है। अगर बिल्डिंग बहुत ही ज्यादा खराब है, तो उसे गिराकर नई बिल्डिंग बनाई जाती है। अगर थोड़ी-बहुत मरम्मत से काम चल सकता है, तो उसे ठीक करवाया जाता है।

 

5 साल पहले ही जर्जर, विभाग ने की अनदेखी

 

लेकिन ग्राम पंचायत बाकुड़ के ग्राम दुलारा का यह प्राइमरी स्कूल आज से 5 साल पहले ही जर्जर हो चुका था, जिसकी स्कूल शिक्षक द्वारा कई बार शिक्षा विभाग को जानकारी दी गई, किंतु शिक्षा विभाग द्वारा सिर्फ मेंटेनेंस पूर्ति की जा रही थी। जबकि बच्चों को हर बारिश के मौसम में टपकती छत के नीचे ही बैठकर पढ़ाया जाता था।

 

पुरानी इमारतों से हादसों का डर

 

बारिश के चलते विगत वर्षों में स्कूल भवन जैसी पुरानी इमारतें ढहने से कई बच्चों की जान चली गई है। ऐसे में दुलारा गांव में छत गिरने की घटना ने एक बार फिर जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत और पुनर्निर्माण को लेकर सरकार की उदासीनता को उजागर किया है।

 

जिम्मेदार कौन?

 

ग्राम पंचायत बाकुड़ द्वारा जर्जर हो चुके इस प्राइमरी स्कूल भवन की लिखित शिकायत विधायक एवं कलेक्टर को दी जा चुकी थी। फिर भी शासन प्रशासन का ध्यान इस और आकर्षक नहीं हुआ। क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है? क्या यह सिस्टम बच्चों की जान से ज्यादा किसी और चीज को महत्व देता है? इन सवालों का जवाब कौन देगा?

 

यह घटना सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की विफलता को दर्शाती है। क्या सरकार और प्रशासन इस घटना से सबक लेंगे और जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत और पुनर्निर्माण को प्राथमिकता देंगे? क्या “पढ़ेगा बच्चा, बढ़ेगा बच्चा” का नारा हकीकत में बदल पाएगा? यह देखना बाकी है।

 

इन्होंने कहा

 

(1) मैं अभी नर्मदापुरम में बैठक में हु आप बीईओ से बात कर लीजिए।

 

विनोद कुशवाहा, जिला शिक्षा अधिकारी

 

(2) बाकुड़ पंचायत के ग्राम दुलारा का प्राइमरी स्कूल भवन की छत गिरी इसकी जानकारी मुझे नहीं है। वहां मरम्मत कार्य के लिए स्वीकृति हुई है। हमें मालूम है कि दुलारा की स्थिति खराब है जिसके लिए मरम्मत और जर्जरी संपत्ति के लिए आवेदन भेजते रहें है। मरम्मत कार्य शुरू कर दी गई थी। हादसे की जानकारी में इंजीनियर से लेता हूं।

 

पीसी बॉस, बीआरसीसी घोड़ाडोंगरी

 

(3) इस संबंध ने ब्लॉक शिक्षा अधिकारी से संपर्क करने पर कॉल रिसीव नहीं हुआ।

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