News By- हिमांशु उपाध्याय/ नितिन केसरवानी
*उठते हैं कई गंभीर सवाल*
कौशांबी । सैनी लोहदा कांड की नींव बनी वह गिरफ्तारी, जो अगर जांच में गलत साबित हो जाए, तो इससे जुड़ा हर सवाल एक और बड़ा सवाल बनकर प्रशासन के सामने खड़ा हो जाएगा। अगर रामबाबू तिवारी का बेटा निर्दोष निकला, तो क्या उसकी गलत गिरफ्तारी, उसके पिता की मौत, और परिवार के टूटे विश्वास की भरपाई कोई कर पाएगा?
*प्रशासनिक गलती या इंसाफ की जल्दबाज़ी?*
कहा जाता है कि न्याय में देरी अन्याय है, लेकिन कभी-कभी जल्दबाज़ी भी अन्याय से कम नहीं होती। पास्को जैसे गंभीर मामलों में बिना पर्याप्त
साक्ष्य के
गिरफ्तारी करना, किसी निर्दोष को अपराधी बना देना सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं, एक पूरे परिवार को तोड़ देता है।
*रामबाबू की मौत – कौन ज़िम्मेदार?*
रामबाबू की आत्महत्या एक साधारण मौत नहीं, बल्कि एक सिस्टम की विफलता है। अगर उनका बेटा निर्दोष पाया जाता है, तो रामबाबू की जान किसकी ज़िम्मेदारी होगी? क्या सिर्फ ‘जांच चल रही है’ कह देने से प्रशासन अपनी जवाबदेही से मुक्त हो जाएगा?
*क्या होगी भरपाई?*
अगर बेटा निर्दोष साबित होता है, तो प्रशासन के सामने तीन बड़े मोर्चे खड़े होंगे।
मनोवैज्ञानिक भरपाई: बेटे को समाज में वापसी का सम्मान दिलाना।
आर्थिक मुआवजा: रामबाबू की मौत पर परिवार को मुआवजा देना, लेकिन क्या पैसे से पिता की जान वापस आ सकती है?
प्रशासनिक जवाबदेही दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई, ताकि भविष्य में ऐसा दोबारा न हो।
*जनता का सवाल – कौन देगा न्याय?*
लोहदा की जनता अब सिर्फ सड़कों पर नहीं, प्रशासन की जवाबदेही के इंतजार में है। यह मामला अब कानूनी से कहीं ज्यादा मानवीय हो गया है। अगर निष्पक्ष जांच होती है और बेटा निर्दोष निकला, तो यह केवल एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा का नहीं, पूरे तंत्र की विश्वसनीयता का सवाल होगा।
*निष्कर्ष*
अगर सच में रामबाबू का बेटा निर्दोष साबित होता है, तो उस एक गिरफ्तारी ने एक बेकसूर की जान ले ली, एक परिवार को तोड़ दिया और पूरे क्षेत्र को हिला दिया। ऐसे में केवल मुआवजा नहीं, जनता के विश्वास की पुनः स्थापना ही असली भरपाई होगी।
अब देखना यह है – क्या प्रशासन इस दर्द का सिर्फ पंचनामा बनाएगा, या वाकई इंसाफ देगा?