सोहागपुर क्षेत्र में टेंडर घोटाले की आड़ में ‘धुआं-धकड़’ प्रकरण, नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां!
बैटरी खराब इलेक्ट्रिक वाहन की जगह चल रही निजी डीज़ल एक्सयूवी, वित्त अधिकारी कर रहे उपयोग; चेंबर में सिगरेट के छल्ले उड़ाते अधिकारी, जांच से भागते जिम्मेदार।
ज्ञानेंद्र पांडेय 7974034468
सोहागपुर एरिया
सोहागपुर क्षेत्र में एक बार फिर टेंडर प्रक्रिया को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। CG10 BN 3988 नंबर की इलेक्ट्रिक वाहन, जिसे S.O. E&M विभाग द्वारा महाप्रबंधक कार्यालय में लगाया गया था, 1 सितंबर से बैटरी खराबी के चलते शहडोल के टाटा शोरूम में खड़ी है। लेकिन नियमों को ताक पर रखकर उसकी जगह काले रंग की डीजल एक्सयूवी 300 का उपयोग जारी है, और वह भी किसी सामान्य अधिकारी द्वारा नहीं, बल्कि क्षेत्र के वित्त अधिकारी स्वयं उस वाहन में आवागमन कर रहे हैं।
एनआईटी (NIT) के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि इलेक्ट्रिक वाहन की जगह केवल इलेक्ट्रिक वाहन का ही प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में नियमों की खुलकर अनदेखी की गई है। सबसे अहम बात यह है कि डीजल वाहन को अब तक विभाग द्वारा अनुमोदन तक नहीं दिया गया है, फिर भी उसका प्रयोग खुलेआम जारी है।
जब इस संदिग्ध गतिविधि के विषय में ONdM विभाग के वरिष्ठ अधिकारी गुप्ता जी से जानकारी ली गई, तो उन्होंने इसे “विभागीय गोपनीयता” बताकर पल्ला झाड़ लिया। सवाल यह उठता है कि यदि यह गोपनीय मामला है, तो इसमें खुलेआम नियमों का उल्लंघन कैसे हो रहा है? क्या महाप्रबंधक महोदय को इस पूरे मामले की जानकारी नहीं है या फिर वे भी इस ‘खेल’ में मौन समर्थन दे रहे हैं?
स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह वाहन सिर्फ विभागीय कार्यों तक सीमित नहीं, बल्कि इसका उपयोग निजी कार्यों – जैसे रात्रि भोज, शराब और कबाब की ढुलाई तक – के लिए भी किया जा रहा है।
चेंबर में ‘धुआं-धकड़’ पद की गरिमा का उड़ता मज़ाक
इस मामले में एक और गंभीर पहलू तब सामने आया जब पत्रकार द्वारा जानकारी के लिए संबंधित अधिकारी से मिलने पर वे अपने चेंबर में सिगरेट के छल्ले उड़ाते नजर आए। न केवल यह एक कार्यस्थल पर अनुशासनहीनता है, बल्कि यह पद की गरिमा को भी ठेस पहुंचाता है।
चेंबर में बैठे अधिकारी ना केवल धुएं में विभागीय जिम्मेदारियों को फूंक रहे हैं, बल्कि निचले कर्मचारियों पर रौब झाड़ने से भी पीछे नहीं हटते। सवाल यह भी उठता है कि ऐसे अधिकारियों पर महाप्रबंधक की कोई निगरानी नहीं है या फिर उन्हें छूट मिली हुई है ?
इस पूरे मामले में यदि निष्पक्ष और गहराई से जांच कराई जाए, तो यह साफ हो सकता है कि किस स्तर पर नियमों की अनदेखी की गई है, और कैसे विभागीय संसाधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है।
ऐसे में महाप्रबंधक कार्यालय को चाहिए कि वह इस मामले में तुरंत संज्ञान ले, दोषी अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करे और यह सुनिश्चित करे कि विभागीय संपत्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए पारदर्शी व्यवस्था लागू की जाए।